गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

बवंडर में धूल का कण बनाम जनता [अतुकान्तिका]


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✍️ शब्दकार ©

🍁 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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आज की जनता ने

अपना जनता होने का

जनतात्व - बोध

समग्रतः 

विसर्जित कर दिया है

मात्र  एक  नेता में।

आज वह 

अपने अंधत्व में 

खाली है,

ज्यों जनतंत्र में

चौपालों पर सुलगती हुई

पराली है।


आज की जनता

नहीं रही अब जनता,

जनता का जनबोध

खोखला ही तनता, 

वह मतदाता भी

 नहीं है,

जो वह मान ले

वही सही है।


आज की जनता है

धूल का एक कण

निर्जीव ,

अस्तित्वविहीन,

किसी बवंडर के पीछे

उड़ने वाला 

मात्र तिनका।


जनता का अस्तित्व

उसका महत्त्व

नष्ट किया जा रहा है,

मगर उसे

राजनीति को

 विकृत करने में

  परम आनंद

  आ रहा है,

आज जनता

 राजनीति की

चहेती बन गई है

अपने ही आत्मघाती 

भविष्य के लिए।


कोई भी जनता

जब बन जाती है भक्त,

किसी दल

 या नेता में

अनुरक्त,

नष्ट हो जाता है

उसका विवेक,

नहीं रह पाती

 वह नेक,

नहीं कर पाती

सत्य का अभिषेक,

बनकर रह जाती 

मात्र बरसाती भेक,

दलों के दलदल में

लथपथ

बस टर्र- टर्र की टेक!


बवंडर के पीछे 

उड़ता हुआ

धूल का कण,

जनता  के 

दुखते हुए वृण,

दिन प्रति दिन

क्षण-क्षण।


💐 शुभमस्तु !


30.12.2020◆3.30अपराह्न।

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