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✍️ शब्दकार©
🦋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अपने - अपने पैमाने हैं।
सच से सारे अनजाने हैं।।
पत्थर अहंकार का भारी।
लटकाए हैं ये नर - नारी।।
न जाने इसके माने हैं।
अपने - अपने पैमाने हैं।।
जाति,धर्मं की बजें ढपलियाँ।
उथली बिखरी घाघ घपलियाँ।
पंक में सिर तक साने हैं।
अपने - अपने पैमाने हैं।।
कोई कमतर नहीं किसी से।
मन मुख रंजित विषज मसी से।
गिरे चित चारों खाने हैं।
अपने - अपने पैमाने हैं।।
ज्ञान का क्या कुछ मानी है?
विभव धन का गुण-खानी है।
परस्पर सब बेगाने हैं।
अपने - अपने पैमाने हैं।।
आदर्शों के झोले कोरे।
काले मन के मुखड़े गोरे।।
दिखावे सहज सुहाने हैं।
अपने - अपने पैमाने हैं।।
कृषक दीन मजदूर पिस रहा।
सिल पर बंदर चोंच घिस रहा
मुखौटों पर नव बाने हैं।
अपने - अपने पैमाने हैं।।
बिना पढ़े सरकार बनाते।
पढ़े - लिखे बाहर रह जाते।।
'शुभम' असहाय सताने हैं।
अपने - अपने पैमाने हैं।।
💐 शुभमस्तु !
03.12.2020◆1.15 अपराह्न।
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