गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

अपने-अपने पैमाने [ गीत ]

  

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✍️ शब्दकार©

🦋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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अपने  -  अपने   पैमाने    हैं।

सच  से  सारे  अनजाने   हैं।।


पत्थर   अहंकार   का  भारी।

लटकाए  हैं ये   नर -  नारी।।

न  जाने   इसके    माने     हैं।

अपने -  अपने   पैमाने    हैं।।


जाति,धर्मं  की बजें ढपलियाँ।

उथली बिखरी घाघ घपलियाँ।

पंक  में  सिर  तक   साने  हैं।

अपने -  अपने    पैमाने   हैं।।


कोई  कमतर   नहीं किसी से।

मन मुख रंजित विषज मसी से।

गिरे    चित    चारों   खाने  हैं।

अपने -   अपने   पैमाने   हैं।।


ज्ञान का  क्या  कुछ मानी है?

विभव धन का गुण-खानी है।

परस्पर   सब      बेगाने    हैं।

अपने -  अपने    पैमाने   हैं।।


आदर्शों     के    झोले    कोरे।

काले मन के   मुखड़े    गोरे।।

दिखावे    सहज   सुहाने   हैं।

अपने  -  अपने   पैमाने   हैं।।


कृषक दीन मजदूर पिस रहा।

सिल पर बंदर चोंच घिस रहा

मुखौटों  पर    नव  बाने    हैं।

अपने  -  अपने   पैमाने   हैं।।


बिना   पढ़े   सरकार   बनाते।

पढ़े  - लिखे  बाहर रह जाते।।

'शुभम'  असहाय   सताने हैं।

अपने -  अपने    पैमाने  हैं।।


💐 शुभमस्तु !


03.12.2020◆1.15 अपराह्न।


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