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✍️ शब्दकार ©
🦋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जाड़ा आया।
कुहरा छाया।।
धूप सुहानी।
शीतल पानी।।
अब अगियाने ।
लगें सुहाने।।
पस्त हौसले।
शांत घोंसले।।
चिड़ियाँ बैठीं।
ऐंठी - ऐंठी।।
हरे खेत हैं।
शीत रेत हैं।।
ओस बरसती ।
टप- टप करती।।
भैंस रँभाती।
गाय खुजाती।।
खुश हैं पिल्ले।
हुए मुटल्ले।।
भूरे बादल।
नभ में रलमल।।
शिशिर छा गई।
'शुभम' भा गई।।
💐
शुभमस्तु !
29.12.2020◆8.00 पूर्वाह्न।
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