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✍️ शब्दकार ©
🍃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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नेता ही भगवान है,जनता पूजक भक्त।
पूँछ बनी भेड़ें सभी,सत्तासन अनुरक्त।।
चला बवंडर देश में, जनता रजकण मात्र।
पीछे चलने को बनी,मात्र भेड़ ही पात्र।।
जनताअब जनता नहीं,मतदाता मतिहीन।
खोए हैं अधिकार सब,राजनीति का दीन।।
खोकर के जनबोध को,हुई विसर्जित आज
जनता है कण धूल का,देखे चम चम ताज।।
'पट भी मेरी चित्त भी,मुझे चाहिए जीत।
अंटा मेरे बाप का,शत्रु न कोई मीत।।'
उनमें सब अवगुण भरे,मैं ही गुण की खान।
बिना मिले सत्ता मुझे,सूख रहे हैं प्रान।।
चाहे बेचें देश हम, चाहे बनें गुलाम।
अर्थ जाय पाताल में,फिर भी करो प्रनाम।।
राजनीति में झूठ का, बहुत बड़ा है योग।
अंधा बाँटे रेवड़ी, करें मीत ही भोग।।
सत्ता सच से दूर है, अस्त्र हमारा झूठ।
अपनों को वरदान हम, बंद सभी को मूठ।।
जनता तो बस आम है,चुसना उसका काम।
चाहें निकले प्राण ही,फिर भी करें प्रनाम।।
भोले -से वे लोग हैं, हम भाले की नोंक।
खुश होते नारे लगा,भले आग में झोंक।।
💐 शुभमस्तु !
31.12.2020◆2.30अपराह्न।
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