गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

हर समय नसीहत [ गीत ]


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✍️ शब्दकार©

🏕️ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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हर समय  नसीहत मिलती है,

क्या आँख  कान  अंधे बहरे?

क्षण- क्षण मानव को सिखा रहा,

दे   देकर    तेरे    दर   पहरे।।


आती   है    कभी   महामारी,

भूकम्प  कभी   आ जाता  है।

अतिवृष्टि कभी सूखा अकाल,

नर ही  नर को  खा जाता है।।

ये कालचक्र  रुकता न  कभी,

कुछ  दाग  छोड़ता  है  गहरे।

हर समय नसीहत मिलती है,

क्या आँख कान अंधे  बहरे??


बाहर    बदबू   भीतर   बदबू,

पावनता   खोज  रहा मानव।

हैं   काम   बुरे,  खोटे,   खट्टे,

बन जाता है   मानव  दानव।।

गीदड़  ने खाल ओढ़  ली  है ,

छिप  रहे  मुखौटे   में  चहरे।

हर समय नसीहत मिलती है,

क्या आँख कान अंधे बहरे??


पशु मानव में अब होड़ लगी,

पशुता  ही   पहले  जीती  है।

मानवता तो  बस   ढोंग शेष,

कर्मों   की  गागर  रीती  है।।

भगवान   बने  पुजते   नेता,

जो जहर भरे  घट  हैं  गहरे।

हर समय नसीहत मिलती है,

क्या आँख कान अंधे बहरे??


कंचन कामिनि का दास बना,

नर   धर्मदास    कहलाता  है।

रँग कर तन  पर  चीवर पहने,

वह व्यास  बना पुजवाता है।।

ढोंगी   संसार    मान    पाता,

उसकी ही ध्वजा आज फहरे।

हर समय  नसीहत मिलती है,

क्या आँख कान अंधे  बहरे??


सत्ता   पर    गुंडे   काबिज़ हैं,

काबिल  की  कोई  पूछ नहीं।

भेड़ों   की   भीड़  चले  पीछे,

होती  है   उसकी  पूँछ नहीं।।

तानाशाही       के     बलबूते,

जनता   भोली  उनसे  थहरे।

हर समय नसीहत मिलती है,

क्या आँख कान अंधे बहरे??


'चित भी  मेरी  पट  भी  मेरी,

अंटा   है    मेरे   बापू    का।'

है 'शुभम'सियासतआज यही,

अंधे  भक्तों  के   टापू   का ।।

हर   तरह   हमारी  हो सत्ता,

हैं   बने  देश  के   वह महरे।

हर समय नसीहत मिलती है,

क्या आँख कान अंधे बहरे??


*थहरे=थर्राती है।

*महरे=पूज्य,श्रेष्ठ,मुखिया।


💐 शुभमस्तु !


31.12.2020◆11.45पूर्वाह्न।

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