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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
भौतिक सुख,सुख का संभ्रम है,
लगता दीपक लेकिन तम है,
खुशियाँ वहाँ नहीं हैं साथी,
न्यून न्यूनतम सुख का क्रम है।
-2-
माया की छाया में अंधा,
मानव के पग,तन , मन,कंधा,
दिन में लेकर दिया ढूँढ़ता,
खुशियाँ, सपने का यह धंधा।
-3-
पर - पीड़क के नैन नहीं हैं,
सोते - जगते चैन नहीं हैं,
खुशियाँ कैसे उसे मिलेंगीं,
'शुभम'सरल,सत बैन नहीं हैं।
-4-
मन में ही खुशियाँ बसती हैं,
बागों में कलियाँ हँसती हैं,
माया का गुलाम बन सिसके,
मानव'शुभम'खुशी रिसती हैं।
-5-
पर - उपकारी सदा सुखी है,
परपीड़क जन कालमुखी है,
'शुभम' उसे खुशियाँ हैं सारी,
दीन -हीन लख बना दुःखी है।
💐 शुभमस्तु !
29.12.2020◆2.00अपराह्न।
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