मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

बँदरी- बंदर [बाल कविता]

 

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✍️ शब्दकार ©

🐒 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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आया  देखो   एक  कलंदर।

कपड़े  पहने  बँदरी - बंदर।।


 बँदरी  कुर्ता  सँग सलवार।

 बंदर       पहने    धारीदार।।


कंधे   पर    लाठी   धर के।

गुस्से   में    जाता भर के।।


बहू     बँदरिया   को  लाने।

ससुरालय   में  रिस  ढाने।।


आगे  -    आगे     बंदरिया।

बंदर   पीछे   दौड़   लिया।।


उन्हें   कलंदर    समझाता।

बंदर     ठंडा   हो   जाता।।


बंदरिया    को   माफ़ी    दे।

लौटा    सिर  धर साफी ले।।


नाच    रहे    बँदरी  -  बंदर।

गोल   भीड़   के  ही अंदर।।


बजी  डुगडुगी   गली-गली।

'शुभम' देखते लला - लली।।


💐 शुभमस्तु !


29.12.2020◆10.45पूर्वाह्न।


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