बुधवार, 18 मई 2022

माँ धरती अंबर पिता 🪷 [ दोहा ]

 

[ धरती,गगन,पाताल, त्रिलोक,त्रिभुवन ]

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✍️ शब्दकार ©

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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      🪺  सब में एक   🪺

माँ धरती अंबर पिता,निज संतति के  हेत।

वांछित संतति से यही,करें वृद्धि नित सेत।।

धरती  प्यासी जेठ में,माँग रही   जलधार।

कब बादल ले अंक में,बरसाए निज  प्यार।।


विशद गगन-से हैं पिता, रहते  हैं बस मौन।

क्या संतति को चाहिए, उन्हें बताए कौन??

छाए मेघ अषाढ़ के,धरा मुदित  रति- चाह।

गगन भरे निज अंक में,आई मुख से आह।।


सप्त लोक भू-ऊर्ध्व हैं,सप्त निम्न पाताल।

जैसा  जिसका कर्म है,वैसा ही  हो  हाल।।

तम का नित साम्राज्य है,नागलोक पाताल।

दानव दैत्यों का जहाँ, होता सदा  धमाल।।


देवलोक  भूलोक सँग,और तीसरा   लोक।

कहते हैं पाताल है,नत त्रिलोक का शोक।।

कर्मभूमि त्रिलोक की,जीव सभी  स्वाधीन।

सत  कर्मों से स्वर्ग में,ऊँचा पद  आसीन।।


स्वर्गलोक भूलोक के,साथ दिव्य भुवलोक।

ग्रह नाक्षत्री दिव्यता,त्रिभुवन विमल अशोक

त्रिभवन-स्वामी आइए,करें जगत कल्याण।

हिंसा बढ़ती जा रही,सबका हो प्रभु त्राण।।


  🪺   एक में सब   🪺

त्रिभुवन से त्रैलोक में,

                       धरती    से पाताल।

गगन मध्य भटका सदा,

                        कर्म   सुरक्षा - ढाल।।


🪴 शुभमस्तु !


१८ मई २०२२◆७.३० आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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