गुरुवार, 12 मई 2022

पंचरंगी कुंडलिया 🪬 [ कुंडलिया ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                        -1-

करके चोरी 'विज्ञ'जन , बाँट रहे  नित ज्ञान।

स्वयं  नहीं  करते कभी,ऐसे विज्ञ    महान।।

ऐसे  विज्ञ  महान,  ज्ञान की बहती      गंगा।

बनी  हुई   नद - नाल, बाँटने वाला    नंगा।।

'शुभम् सुनामी तेज,पहाड़ों से जल गिरके।

करते स्वर आक्रांत ,ज्ञान की चोरी  करके।।


                        -2-

पढ़ते  थे  पहले कभी,गुटखा ध्यान  लगाय।

अब गुटखा खाने लगे, दाँतों तले   चबाय।।

दाँतों  तले   चबाय ,थूकते खैनी      चुनही।

ज्यों घुन खाता काठ,जुटे वे अपनी धुन ही।

'शुभम्' न डरते लोग , राह कर्कट की चढ़ते।

बूढ़े,बालक ,युवा , नहीं अब गुटखा   पढ़ते।।


                        -3-

पीना  नहीं  पसंद  है, नवजातों  को   दूध।

चुसनी में अब चाय है,भावे तनिक न ऊध।।

भावे तनिक न ऊध,विकृत मति माती माता।

रुकती  नहीं  शराब,पुत्र झोला भर  लाता ।।

'शुभम्' सुरा का दौर,इसी से मरना - जीना।

बोतलवासिनि अंक लगाए, ढंग  से  पीना।।


                        -4-

होती है शुभ भोर की,नई किरण जब लाल।

चार  बाँस सूरज चढ़े,उठता पूत  निहाल।।

उठता पूत निहाल,करे मदिरा से   कुल्ला।

करता है बहु शोर, जगाता सभी  मुहल्ला।।

'शुभम्' देख शुभ रंग, बैठकर  मैया  रोती।

छिद्र हुआ जलयान,भाग्यलिपि उलटी होती।


                        -5-

दारू  पीकर  नाचना ,बहुत जरूरी  आज।

ठुमका  लगे   बरात में,बने हुए  सरताज।।

बने  हुए सरताज,न टुकड़ा मुँह में  जाए।

पहले  पीना  खूब,बाद  भोजन  सरकाए।।

'शुभम्' आज की रीति, खजाना पाया कारू।

हुआ  नशे  में  चूर, मिली अंगूरी      दारू।।


🪴शुभमस्तु !


११.०५.२०२२◆३.००

पतनम मार्तण्डस्य।

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