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✍️ शब्दकार©
🎇 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
जिंदगी में आदमी को हैं नहीं कब मुश्किलें,
कौन कहता है कि हल होती नहीं ये मुश्किलें,
बन प्रमादी हाथ पाँवों को नहीं तुम रोकना,
जो चला अनथक पथों में दूर होतीं मुश्किलें।
-2-
कर्मपथ पर जो चला है मंजिलें मिलतीं उसे,
रुकता नहीं थकता नहीं शूलपथ पर जो घुसे,
मुश्किलें उस धैर्यशाली को न आड़े आ सकीं,
पाहनों से शैल पर देखा न जल कैसे रिसे !
-3-
अधर पर मुरली सजी तो हाथ में भी चक्र था
योग योगेश्वर कन्हैया नवनीत खाता तक्र का,
मुश्किलें इतनी पड़ीं पर लौटकर देखा नहीं,
कृष्ण की उस भाललिपि का लेख बेढब वक्र था।
-4-
बैठा रहा तट पर धरे निज हाथ में तू हाथ को
सरित को कैसे तरेगा ढूँढ़ता जो साथ को,
पार करना है अकेले नाव खेनी आप ही,
मुश्किलें आड़े उसे हैं ठोकता निज माथ को।
-5-
कोशिशों का ज्वार यों तेरा नहीं ठंडा पड़े,
मुश्किलें सब पार होंगीं राह में जो तू अड़े,
चींटियों को देख ले मिलतीं उन्हें गिरिचोटियाँ
'शुभं' कर अपने इरादे फौलाद-से पक्के कड़े।
🪴 शुभमस्तु !
२४ मई २०२२◆२.००
पतनम मार्तण्डस्य।
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