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छंद विधान:
1.23 वर्णों का वर्णिक छंद।
2.सात भगण (211) +2 गुरु.
3. चार पद तुकांत।
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✍️ शब्दकार ©
🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
जेठ चले पछुआ तरुणी सिर,
ढाँकि चली मग में घबराई।
जेठ कि लाज करै हर नारि,
बिना घुँघटा कत बाहिर आई।।
जाइ बरात वु काँपि रही,
अधनंग नची तजि कें शरमाई।
माघहु सोचि रहौ मन में,
तजि लाज दई इतराति लुगाई।।
-2-
'आजु चलौ जमुना तट पै सखि,
कान्ह वहाँ निज धेनु चरावें।
ग्वालनु के संग डाल कदंब कि,
डारत झूलहु मोद करावें।।'
'मो मन में डरु छाय रहौ घर,
जाय कहा बतियाँ कहि पावें।'
'का बस में अपने सजनी जब,
राह में कान्ह खड़े मिलि जावें।।'
-3-
सावन में नित मेह झरै बदरा,
झुकि छाइ रहे अति भारी।
प्यास बुझी तपती धरती,
हरषाइ रही विरही ब्रज नारी।।
दादुर टेर मची सर में मम,
दादुरि बेगि न आवति प्यारी।
राति गई टर्रात रहौ मुख,
फाड़ि भई सिगरी मम ख्वारी।।
-4-
हे शिव शंभु !कृपा करि कें,
सबकौ कल्याण करौ जगती में।
दारिद दुःखहु दूरि करौ,
उर-भीति निवारहु नाव नदी में।।
होय न रार न वार कहूँ ,
सुख- शांति बयार बहै धरती में।।
सावन में बरसें सरसें नव,
मेघ सदा वन में परती में।।
-5-
जो जनती नर को जननी तहँ,
छूत - अछूत कौ भेद न जानों।
राम नें मान दियौ शबरी वन,
ढूँढ़ि लई तृण खेद न मानों।।
मात गुरू कहलाति सदा भरि,
अंकहु मोद दियौ रति पानों।
नारिन कौ नित मान करौ,
परुषा निज गूढ़ अहं तजि आनों।।
🪴 शुभमस्तु !
१६.०५.२०२२◆११.०० आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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