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✍️ शब्दकार ©
🎺 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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बैंड भी था
साथ में होने वाला
हसबैंड भी था,
आए थे हँसी - खुशी
'वर यात्रा' में
मात्र उड़ाने के लिए
भरपेट दावत?
बैंड भी बज गया
भावी हसबैंड भी
जनवासे में
रम गया,
स्वाद ले ले
उड़ा ली दावत,
अब क्यों यों
हो गई
वर से अदावत?
कि अपना मुँह मोड़
वापस चले आए!
घर वालों, फूफा,
जीजा के संग
उसे अकेला छोड़
चले आए!
ये भी कोई
वर यात्रा है?
तुम्हारे लौटने में
क्या किसी भी
प्रमाण की मात्रा है?
कि तुम वरयात्री हो
या कोई लुटेरे?
पेट के भुक्खड़
या भोजनभट्ट पिटारे?
साथ में आए थे
तो साथ भी निभाना था,
इस तरह
वरयात्रा को
'रव यात्रा' बना
भोग उदरस्थ कर
चले नहीं आना था!
वाह री
स्वार्थ भरी
आधुनिकता?
रव के लिए
क्या बैंड बाजा
कम था !
उनकी पिपनियों
धामाधम में नहीं
इतना दम था!
जो खाने भर का
'व्यौहार' निभाने
आना था,
उसके बाद
रव करते हुए
'रव यात्रा' को ले
बिना वर ही
चले आना था!
🪴 शुभमस्तु !
१२.०५.२०२२◆ ४.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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