■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
गुरु बहुतेरी सीख सिखाते।
अँधियारे को दूर हटाते।।
पहली गुरु निज जननी माता।
जिनको झुका शीशमैं ध्याता।
माँ के हाथ अंक दुलराते।
गुरु बहुतेरी सीख सिखाते।।
जन्म बाद माँ धरती आई।
लिया गोद में चोट न पाई।।
रज में लोट सभी बिलखाते।
गुरु बहुतेरी सीख सिखाते।।
मिला अंश जो जनक हमारे।
पलता जीवन पिता -सहारे।।
उनसे उऋण न सुत हो पाते।
गुरु बहुतेरी सीख सिखाते।।
माँ ने पहला बोल सिखाया।
भाषा का रस घोल पिलाया।।
तब हम पढ़ने शाला जाते।
गुरु बहुतेरी सीख सिखाते।।
विद्यालय में शिक्षक आए।
नित्य 'शुभम्' बहु पाठ पढ़ाए।
कलरव कर खग हमें सुनाते।
गुरु बहुतेरी सीख सिखाते।।
🪴 शुभमस्तु !
१७.०५.२०२२◆६.३० आरोहणम् मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें