शनिवार, 28 मई 2022

प्रयास 💎 [ अतुकांतिका ]


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✍️ शब्दकार ©

💎 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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हाथ पर हाथ 

रखने भर से

नहीं चलता काम,

सुबह से शाम

अहर्निश अविराम

लगना पड़ता है,

तभी दो जून का

 भोजन व्यक्ति को

मिलता है,

अनायास कुछ भी

हाथ नहीं आता।


बिना हिलाए 

हाथ-पैर भी

जड़ हो जाते हैं,

वेदना से टीसते हैं

व्रण भर जाते हैं,

निष्क्रियता मृत्यु है,

यही ऋत है सत्य है।


कर्मशीलता जीवन है,

मानव हेतु संजीवन है,

पिपीलिका कभी

 निराश  नहीं होती,

चढ़ती है गिरती है,

फिर चढ़ती गिरती है

अंत में उच्च शृंग के

सर्वोच्च  तल पर

 उतरती है,

अपने अथक प्रयास को

सार्थक करती है।


बैठे हुए किनारे पर

मोती किसने भला पाए?

सागर में जो उतरे

गहरे में

वही मुक्ता भर- भर लाए,

प्राण का खतरा भी

जीवन देता है,

जो जान डालता है

जोखिम में,

वही कुछ कर 

गुजरता है


मुर्दे बहते हैं

नदी के प्रवाह में,

पुरुषार्थी धारा के विपरीत

मार्ग बनाते हैं,

परजीवी बस

रक्त चूषक होते हैं,

परोपकारी रक्त

परहित में चढ़वाते हैं।


अकर्मण्य को

आजीवन

 रुदन ही लिखा है,

बहानेबाजियों का

वहाँ ज़ख़ीरा ही सजा है,

रहना है जिंदा तो

प्रयास रत रहना होगा,

प्रयास करके 

नए पथ का

निर्माण करना होगा,

चलते रहने का नाम ही

जीवन है,

जिंदादिल ही

सदा अमर

 हुआ करते हैं।


🪴शुभमस्तु !


२८ मई २०२२◆७.३० आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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