गुरुवार, 12 मई 2022

रिश्ते 🫧 [ मुक्तक ]


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✍️ शब्दकार ©

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                        -1-

रिश्ते     होते    हवा    समान,

तने   परस्पर   नहीं     कमान,

नहीं  नयन    से    दिखते   वे,

आपस  का विश्वास    प्रमान।


                        -2-

कोमल  धागे    के   दो  मोती,

माला में  उर  -  प्रीति पिरोती,

उभय पक्ष   रिश्ते  की गरिमा,

नहीं स्वार्थ  की  बदबू   होती।


                        -3-

रिश्ते   संज्ञा  जुड़   जाने   से,

नहीं  स्वार्थ  में  मुड़   पाने से,

महक त्याग  की आती भीनी,

क्या कपूर - सा  उड़ जाने से?


                       -4-

रिश्ते  में   दरार   तब   आती,

स्वार्थवृत्ति   उर में जब  छाती,

किरच -किरच शीशे की होतीं,

अपने -  अपने बिंब  दिखाती।


                        -5-

चला  न पाओ  तो मत जोड़ो,

ऐसे   रिश्ते   पल   में    तोड़ो,

चालाकी   का   काम नहीं  है,

'शुभम्'त्वरित अपना रुख मोड़ो।


🪴  शुभमस्तु !


१२.०५.२०२२◆८.४५ आरोहणम मार्तण्डस्य।

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