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✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
रिश्ते होते हवा समान,
तने परस्पर नहीं कमान,
नहीं नयन से दिखते वे,
आपस का विश्वास प्रमान।
-2-
कोमल धागे के दो मोती,
माला में उर - प्रीति पिरोती,
उभय पक्ष रिश्ते की गरिमा,
नहीं स्वार्थ की बदबू होती।
-3-
रिश्ते संज्ञा जुड़ जाने से,
नहीं स्वार्थ में मुड़ पाने से,
महक त्याग की आती भीनी,
क्या कपूर - सा उड़ जाने से?
-4-
रिश्ते में दरार तब आती,
स्वार्थवृत्ति उर में जब छाती,
किरच -किरच शीशे की होतीं,
अपने - अपने बिंब दिखाती।
-5-
चला न पाओ तो मत जोड़ो,
ऐसे रिश्ते पल में तोड़ो,
चालाकी का काम नहीं है,
'शुभम्'त्वरित अपना रुख मोड़ो।
🪴 शुभमस्तु !
१२.०५.२०२२◆८.४५ आरोहणम मार्तण्डस्य।
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