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✍️ शब्दकार ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कछुआ एक वृत्ति है,
पर यहाँ तो
व्यक्ति ही कछुआ है,
जिसको बनाने वाला
भी व्यक्ति मछुआ है,
जो अब तक
बनाया जाता रहा ,
जितना भी सह सकता था
खूब सहा,
पर अब तो
जाता नहीं रहा!
उसे बताया गया
हिंदुस्तान में
ताजमहल से सुंदर
कुछ भी नहीं है,
बस जो रटा दिया
वही सही है।
परंतु आज वह
झूठ हो गया,
हजारों मंदिर
एक नहीं
हजारों गुणा सुंदर
हजारों वर्षों से
अपनी यश पताका
उच्च आकाश में
बुलंद कर रहे,
हमने सोचा कि
ये सच भी
कोई हमसे कहे,
पर आज वह
सिद्ध हो गया,
जगत में प्रसिद्ध हो गया।
बैठे रहे बने कछुए
झूठे इतिहास को
रटाते रहे,
खुली आँखों में
मूर्ख बनाते रहे,
सियासत के चूल्हों पर
रोटियाँ सेंक खाते रहे,
वाम पंथियों के चंगुल में
अपने को फँसाते रहे।
अब तो कछुए ने
अपनी ग्रीवा
बाहर निकाल ली है,
पूर्व से पश्चिम
उत्तर से दक्षिण
वास्तु के सहस्रों
प्रतिदर्श ,
भारतीय संस्कृति के
उच्च आदर्श,
जिनका कोई जोड़
नहीं है,
उनके लिए धरती पर
उपमाएं भी नहीं हैं,
वे मात्र उन्हीं जैसे हैं,
अब कछुए की
ग्रीवा बाहर देख रही है।
🪴 शुभमस्तु !
१९ मई २०२२◆ ४.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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