सोमवार, 30 मई 2022

गंगा माँ 🏞️ [ कुंडलिया ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🏞️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

गंगा  माँ  हरिद्वार  में , पावनता   की   धार।

अघ-ओघों को तारती,करती भव  से   प्यार।

करती भव से प्यार,बुलाती निज भक्तों  को।

आधि-व्याधि से दूर,करे माँ अनुरक़्तों को।।

'शुभम्' शांति का धाम,बनाती तन मन चंगा।

झुका चरण में शीश, किया करता माँ गंगा।।


                        -2-

गंगा  माँ  की  गोद  जा,हरती देह  - थकान।

जैसे  जननी  अंक में, वैसा  गंग  -  नहान।।

वैसा गंग-नहान, ताप  नाशिनि   सुरसरिता।

मानव का कल्याण,किया करती दुख हरिता

'शुभम्'न रुकती धार,हिमाचल से चल बंगा।

लुटा  रही  माँ  प्यार, पावनी शीतल   गंगा।।


                        -3-

गंगा माँ जलरूपिणी,हरतीं जल   दे  प्यास।

फसलों का सिंचन करें,हरे वृक्ष,  वन, घास।।

हरे  वृक्ष, वन, घास, लताएँ नित   लहरातीं।

जल पीते जन, जीव,हवाएँ रहीं  न   तातीं।।

'शुभम्' सुशीतल घाम,पखेरू रंग  -  बिरंगा।

कच्छप जल घड़ियाल,मस्त रमते जल गंगा।


                         -4-

गंगा  माँ  का जल सदा,पावन सद  निर्दोष।

कृमि उसमें पनपें नहीं, औषधियों का कोष।

औषधियों  का  कोष,मिटाता रोग    हमारे।

दुर्गंधों   से  दूर,  पान    कर  बिना  बिचारे।।

'शुभम्' करे यदि वास,किनारे भूखा -  नंगा।

देतीं  अपना  नेह,  तरंगिणि माता     गंगा।।


                        -5-

गंगा माँ  की  आरती , होती नित    हरिद्वार।

पौड़ी  के  हर घाट पर,सजता है    त्यौहार।।

सजता  है  त्यौहार, बजाते घन  - घन   घंटे।

तन्मय  होती  भीड़, भुला जीवन  के  टंटे।।

'शुभम्' महकती गंध,पावनी विरल   तिरंगा।

फहराता  हर ओर,लहरती पावन    गंगा।।


🪴 शुभमस्तु !


२८ मई २०२२◆५.००

पतनम मार्तण्डस्य।


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