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✍️ शब्दकार ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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जीवन सबका अपना - अपना,
उतना ही फल जितना तपना,
परिजीवी बन कर जो रहते,
देख रहे वे केवल सपना।।1।
थलचर जलचर नभचर रहते,
तीन भुवन में क्या- क्या सहते,
कर्मों का जीवन शुभ कर्ता,
मृतक सदा धारा में बहते।।2।
स्वावलंब के चरणों पर चल,
बहती है ज्यों सरिता कल - कल,
जीवन नई दिशाएँ देता,
चरैवेति है तेरा संबल।।3।
मानव देह जीव ने पाई,
क्यों धरती पर आ इतराई,
होता गर्दभ अश्व योनि में,
रहती जीवन की न लुनाई।।4।
कर्म योनि मानव यह तेरी,
क्यों करता भोगों में देरी,
जीवन जी मत शूकर - जैसा,
'शुभम्' विदा की बजती भेरी।।5।
🪴 शुभमस्तु !
१८ मई २०२२◆ ८.०० आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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