[बिजली,पानी, हवा, तूफान,आँधी]
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✍️ शब्दकार
🌈 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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🏞️ सब में एक🏞️
ले बिजली को अंक में,मेघ हुए बरजोर।
मौन धरा को डाँटते, करते रव घनघोर।।
बिजली-सी कौंधी हिये, आई तेरी याद।
नाद नहीं कोई उठा, करती तू संवाद।।
पानी जीवन जीव का, खलता सदा अभाव।
पानी बिना न चल सके,पड़ी रेत में नाव।।
अति दोहन करना नहीं, पानी का हे मीत!
पानी रहा न आँख में,होगा सब विपरीत।।
पछुआ चलती जेठ में,व्याकुल हैं जन जीव।
रुख बदलेगी जब हवा,घर आएँ तव पीव।।
हवा हेकड़ी हो गई,आया मास अषाढ़।
सूरज दादा जा छिपे,छाए मेघ प्रगाढ़।।
ऐंठ नहीं दिखलाइए, बनकर नर तूफान।
क्षणिक ताव होता बुरा,रहता नहीं निशान।।
मिलता है निर्वात जो,उठता रव घनघोर।
क्रीड़ा हो तूफान की, हिला धरा के छोर।।
समझ नहीं नर बावले,ये आँधी के आम।
समय बचा रत हो सदा,बनें सभी तव काम।
आँधी या तूफान का,एक बड़ा विज्ञान।
कुछ घड़ियों के बीच ही,करते हैं अवसान।।
🏞️ एक में सब 🏞️
आँधी, पानी या हवा,
बिजली या तूफान।
कहर ढहाते जब कभी,
मचे त्राहि भगवान।।
🪴 शुभमस्तु !
२५ मई २०२२◆५.३० आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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