गुरुवार, 12 मई 2022

वृक्षों की छाँव में 🌳 [ दोहा ]


   [वृक्ष,पत्ते,जड़ें, फल,शाख ]

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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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        🪷 सब में एक 🪷

वृक्ष धरा के ओज हैं,वृक्ष अवनि -  शृंगार।

करते हैं इस सृष्टि का,सदा सृजन  साकार।।

पाँच  अंग हैं वृक्ष के,  करें मौन    उपकार।

देते  हैं  वे  फल  सदा, यद्यपि सहें    प्रहार।।


पाकड़   पादप    के  घने, पत्ते    छायादार।

पथिकों को दें शांति का, पावन शुचि उपहार

मन मानव का थिर नहीं,ज्यों पीपल का पात

पत्ते-पत्ते पर लिखा,काव्य अमल अवदात।।


सुदृढ़ हैं जिनकी जड़ें, विटप वही अनुकूल।

करते हैं  उपकार  वे, बरगद, आम,  बबूल।।

जड़ें समाई  भूमि में,तरु को  कर   मजबूत।

अहंकार   से  दूर  हैं,  जीवन से      संभूत।।


कर्मों केअनुसार ही, फल का है   परिणाम।

नतमस्तक संसार है, करता प्रमन   प्रणाम।।

वपन निबौली बीज से,फल भी  वैसे   मीत।

स्वाद कटुक मिलना सदा,यही जगत की रीत


शाख-शाख क्यों सींचता, सींच मीत तू मूल।

पुष्पित होगा तरु सदा,तन- मन के अनुकूल।

उल्लू  हो  हर शाख पर, उजड़ेगा    उद्यान।

उसे न धी से काम है,शयन मात्र   ही  शान।।


     🪷  एक में सब  🪷

शाख,फूल,फल वृक्ष के,

                 आवश्यक    शुचि  अंग।

जड़ें, तना,पत्ते सभी,

                      महकाते   शुभ  रंग।।


🪴 शुभमस्तु !


११.०५.२०२२◆७.१५ आरोहणं मार्तण्डस्य।


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