सोमवार, 30 मई 2022

झूठों की विदाई 💎 [ सजल ]


■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

समांत : आई ।

पदांत: कीजिए।

मात्राभार :19.

मात्रापतन: शून्य।

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

☔ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

हो       भला    सबकी    भलाई    कीजिए।

मत    कभी   जन   की   बुराई    कीजिए।।


कर्म   करने     के   लिए   नर  - देह     ये,

स्वेद   से   श्रम    से      कमाई    कीजिए।


रोग     जो      आएँ    कभी   इस   देह   में,

स्वस्थ         होने     को     दवाई   कीजिए।


खेत       को   बंजर    नहीं     है   छोड़ना,

स्वस्थ      बीजों   की     बुवाई    कीजिए।


नीच    की      संगति    कभी अच्छी   नहीं,

जो      न     माने    तो  ठुकाई    कीजिए।


बीज       बोना       ही     नहीं  पर्याप्त   है,

सूखते           पौधे       सिंचाई  कीजिए।


सत्य    के   नित   साथ    में रहना  'शुभम्',

झूठ  ,     झूठों     की    विदाई    कीजिए।


🪴 शुभमस्तु !


३० मई २०२२ ◆११.००आरोहणम् मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...