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✍️ शब्दकार ©
🙋🏻♂️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
बात बचपन की चली है भूलता बचपन नहीं,
मात्र यादें ही बची हैं स्वर्ग से भी कम नहीं,
जिंदगी के सब थपेड़े औऱ लफड़े शून्य हैं,
झूठ ने यौवन सजाया बालपन-सा सच नहीं।
-2-
जिंदगी का फूल बचपन आज वह मुरझा गया,
बीज फल के लोभ में नित देख ले उलझा गया,
खेलना स्वच्छन्द खाना औऱ पीना याद है,
डेढ़ दशकों में हमारी जिंदगी पर छा गया।
-3-
प्यार जो माता पिता या मम पितामह का मिला,
आज तक बचपन न लौटा नेह का सुदृढ़ किला,
मधुर स्मृतियाँ बची हैं कागजों की नाव में,
चल रहा है जिंदगी को पालने का सिलसिला।
-4-
बचपने की बात कहकर हेयता मत लाइए,
शक्ति है तो मीत बचपन की डगर फिर जाइए,
जिंदगी की मंजिलों की सीढियां हैं पाहनी,
मात्र च्विंगम की तरह अब बालपन चुभलाइए।
-5-
जननी ने बचपन में अपना प्यार निछावर मुझे किया,
स्वयं सो रही गीले में वह सूखा बिस्तर मुझे दिया,
लाड़ पिता बाबा दादी का पाकर के मैं धन्य हुआ,
शब्दों में कृतार्थ भावों से शुभाशीष ले 'शुभम्'जिया।
🪴 शुभमस्तु !
२६ मई २०२२ ◆११.४५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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