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समांत :आ।
पदांत:गई।
मात्राभार :19.
मात्रापतन: शून्य।
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✍️ शब्दकार ©
☔ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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ग्रीष्म बीती पुण्य पावस आ गई।
मुदित तृण पादप लता भी भा गई।
प्यास धरती की बुझाने के लिए,
गगन में काली घटा भी छा गई।
लोटते हैं रेत में पंछी सहस,
भोर से ही कूक कोकिल भा गई।
त्याग तप का मूल्य है संसार में,
धरणि जो तपती रही सब पा गई।
आम गदराने लगे हैं डाल पर,
बैठ डाली पर शुकी फल खा गई।
विरहिणी की आँख चौखट पर लगी,
आँसुओं से गीत विरहा गा गई।
जिंदगी सुख -दुःख का उपक्रम 'शुभम्',
तप्त लू के बाद रिमझिम आ गई।
🪴 शुभमस्तु !
३० मई २०२२ ◆६.००आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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