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शब्दकार ©
🦧 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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गोरे - गोरे बाल तुम्हारे।
लगते बाबा हमको प्यारे।।
'कहते सब पहले थे काले।
लगते चिकने बड़े निराले।।
अब कैसे रँग बदले सारे।
गोरे - गोरे बाल तुम्हारे।।'
'अनुभव ने इनको रँग डाला।
रहा न अब वह रँग भी काला।'
'लगते हैं अंबर के तारे।
गोरे - गोरे बाल तुम्हारे।।'
'पापा जी के क्यों हैं काले।
नहीं बने वे अनुभव वाले??'
'सच कहते हो पौत्र हमारे।'
'गोरे - गोरे बाल तुम्हारे।।'
'बाबा चलो रंग ले आएँ।
या नाई से उन्हें रंगाएँ।।
होंगे पहले जैसे न्यारे।
गोरे - गोरे बाल तुम्हारे।।'
'पक्का रँग है इनका गोरा।
क्यों रँगवाता इनको छोरा??
नहीं माँग कर लाया प्यारे।'
'गोरे - गोरे बाल तुम्हारे।।'
🪴 शुभमस्तु !
२७ मई २०२२◆१.१५पतनम
मार्तण्डस्य।
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