शनिवार, 28 मई 2022

बाबा के बाल 🦧 ◆ बालगीत ◆


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 शब्दकार ©

🦧 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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गोरे  -  गोरे    बाल     तुम्हारे।

लगते  बाबा   हमको   प्यारे।।


'कहते   सब   पहले  थे काले।

लगते  चिकने  बड़े   निराले।।

अब  कैसे   रँग   बदले   सारे।

गोरे   -  गोरे   बाल  तुम्हारे।।'


'अनुभव  ने  इनको रँग डाला।

रहा न अब वह रँग भी काला।'

'लगते    हैं  अंबर   के    तारे।

गोरे - गोरे    बाल    तुम्हारे।।'


'पापा जी    के  क्यों हैं काले।

नहीं बने वे  अनुभव  वाले??'

'सच   कहते   हो पौत्र हमारे।'

'गोरे -  गोरे   बाल    तुम्हारे।।'


'बाबा  चलो   रंग   ले    आएँ। 

या  नाई    से  उन्हें     रंगाएँ।।

होंगे  पहले      जैसे      न्यारे।

गोरे -   गोरे बाल     तुम्हारे।।'


'पक्का  रँग है   इनका   गोरा।

क्यों  रँगवाता इनको  छोरा??

नहीं माँग  कर    लाया प्यारे।'

'गोरे - गोरे     बाल  तुम्हारे।।'


🪴 शुभमस्तु !


२७ मई २०२२◆१.१५पतनम

मार्तण्डस्य।

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