■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
🏞️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
हरि की पौड़ी पर लगा, भक्तों का दरबार।
करते हैं किल्लोल वे, गंगामय हरिद्वार।।
दूर प्रदेशों के चले, शहरों से नर - नारि,
गंगाजल भी भर लिया, सुरसरि का उपहार।
देखा तीव्र प्रवाह को, थाम शृंखला लौह,
अवगाहन जल में किया शीतलतम जलधार
पौड़ी के हर घाट पर, जनरव का आनंद,
नहलाती माँ पुत्र को, दे गंगा का प्यार।
गंगा माँ की आरती, करते हैं सब लोग,
बजा घण्ट घड़ियाल वे,बढ़ती भीड़ अपार।
संध्या - वेला आ लगी, रोका गंग - नहान,
झूम रहे आंनद में , बैठे लगा कतार।
दानी करते दान भी, याचक माँगें भीख,
आटे की नम गोलियाँ, झपट रहीं झख धार।
पूजा के बाजार की, रौनक का आनंद,
भक्त घूमकर ले रहे,गंगा नाम उचार।
'शुभम्' पुण्यकर्ता सुजन,को पुकारती मात,
आ गंगा स्नान कर, कर दूँगी उद्धार।
🪴 शुभमस्तु !
२५०मई२०२२◆२.००
पतनम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें