मंगलवार, 31 मई 2022

भूख 🍛 [ मुक्तक ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🍛 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

एक  वे हैं  फेंक   देते, रोटियाँ जो   घूर  पर,

एक  वे  हैं   ढूँढ़ते हैं,   रोटियाँ जो  घूर  पर,

अन्न को बरबाद करना,यों उचित होता नहीं,

वे 'शुभम्'भीआदमी हैं,जो भटकते घूर पर।


                          -2-

पेट की ज्वाला भयंकर,क्या नहीं करवा रही,

भूख से  संतान  तड़पे, धूप में झुलसा   रही,

फेंक  देते   ढेर पर  जो,रोटियाँ  बैठी    वहाँ,

हाथ की पढ़कर लकीरें,भाग्य को पछता रही


                          -3-

देह  पर  कपड़े  नहीं  हैं,पेट में  रोटी   नहीं,

जीवनी इच्छा कड़ी है, मात की  छोटी नहीं,

साथ में निज सुत सँभाले, ढूँढ़ती है रोटियाँ,

ढेर  पर  जो सूखती हैं,देखती मोटी   नहीं।


                         -4-

फेंक  देते  रोटियाँ   जो, गंदगी  के  ढेर  पर,

सोचते कण भी नहीं वे,निज मनों में बेर भर,

काश  दे देते किसी को,भूख से  बेहाल जो,

सोचती है भाग्य अपना,शांति पाती सेर भर।


                         -5-

अन्न की अवमानना है,है नहीं समुचित कभी,

अन्न  अपने  देव हैं नर,प्राण देते   वे    सभी,

अन्न थाली में वही ले,जो उदर में  ग्रहण   हो,

फेंकना अनुचित सदा है,भूल मत ये बात भी


🪴शुभमस्तु !


३१.०५.२०२२◆ ११.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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