गुरुवार, 19 मई 2022

आँगन -आँगन में दीवारें 🏕️ [ गीत ]


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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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आँगन -  आँगन  में     दीवारें,

सड़कों पर     जन- रेला    है।

ठोड़ी  पर टिक  रही   हथेली,

मानव    यहाँ   अकेला    है।।


कहते  थे  कुटुंब   वसुधा  को,

सभी    किताबी    बातें     हैं।

सोदर  बना   शत्रु  सोदर का ,

प्राणघात     की    घातें    हैं।।

नभ   में  घूम   रहे  ज्यों  तारे,

बना     मृत्तिका      ढेला   है।

आँगन   -   आँगन  में  दीवारें,

सड़कों   पर  जन -  रेला है।।


कोरे     आदर्शों    की    बातें,

भाषण   सब    बकवासी  हैं।

नेता  चूस    रहे   जनता  को,

सुघर     लक्ष्मी   दासी    हैं।।

बाँटा    अन्न   बिना   पैसे  के,

डाला     नाक    नकेला    है।

आँगन -   आँगन   में   दीवारें,

सड़कों  पर   जन -  रेला है।।


देशभक्त   का   ढोंग  बनाया ,

रँगे    हुए      कपड़े      पहने।

कनक- कामिनी से चुँधिआए,

भरे      कोठरी     में    गहने।।

लच्छेदार      जलेबी     जैसी,

मधु    बातों   का    भेला   है।

आँगन -  आँगन    में   दीवारें,

सड़कों  पर    जन - रेला है।।


छाया    वाले   पेड़    नहीं  हैं,

सड़कें     सूनी   -   खूनी   हैं।

मानसून     आए    भी   कैसे,

जलीं सड़क   पर   धूनी   हैं।।

नहीं  पथिक को छाया  पानी,

नर  पश्चिम    का    चेला   है।

आँगन -   आँगन   में   दीवारें,

सड़कों  पर   जन - रेला  है।।


दौड़  लगाते   गाँव   शहर की,

शहर    उन्हें    लतियाते    हैं।

दर  -  दर   दूध  बेचते जाकर,

क्रय   सब्जी   कर  लाते  हैं।।

कौड़ी  का  भी मोल   नहीं है,

गूँगों    का    जग    मेला   है।

आँगन -   आँगन   में   दीवारें,

सड़कों  पर   जन -  रेला है।।


🪴 शुभमस्तु !


१८ मई २०२२◆ ७.३० पतनम मार्तण्डस्य।


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