410/2023
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छंद विधान:
1.8 सगण (112) +लघु
2.12,13 वर्ण पर यति। कुल 25 वर्ण।
3.चारों चरण समतुकांत।
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
अपना-अपना सब लोग कहें,
अपना न कहीं यह लें तुम जान।
कुछ लेकर साथ न कोइ चला,
तिनका न गया यह झूठ न मान।।
सतराइ चलें इतरायँ बड़े,
धन को दिखलाइ करें गुणगान।
नित माँस भखें खग ढोरन के,
नहिं पीवत नीर करें मधु पान।।
-2-
घरनी घर की तरनी सब की,
सरिता जल धार करे भव पार।
समझें नहिं कोमल है सबला,
टपका मत जीभ भले नर लार।।
जननी जन की निज दूध पिला,
नित पालति पोषति मान न हार।
अपमान करे मत नारि भली,
यश मानस खोलति पावन द्वार।।
-3-
छलनी बस नाम, नहीं छलती,
कचरा सब छाँट करे सु-सुधार।
बदनाम हुई बद नाम रखा,
नित बाँटति छाँटति अन्न असार।।
बदनाम बुरा बद श्रेष्ठ सदा,
बरसावत बादल सिंधु न खार।
धरती करती नर को नित ही,
सब खोद रहे बरसावति प्यार।।
-4-
नदिया-नदिया नर-नारि कहें,
निशि -वासर देति सदा जलधार।
करनी न लखे सरि की दुनिया,
बस गाल बजाइ चलें सब कार।।
खिंचवाइ जनी-जन झूठ छवी,
छपवाइ रहे अपने अखबार।
परदा -परदा बहु काज बुरे,
करते ,रहते , मरते नर- नार।।
-5-
अपने मन में मत हीन बनें,
कर सोच महान, अपुष्ट न सोच।
मत दूषित भाव भरे मन में,
समझें नहिं मानव धी तव पोच।।
लकड़ीवत सख्त नहीं रहना,
लतिका सम सौम्य रखें मन लोच।
नभ-सी कर व्यापक बुद्धि सदा,
पथ बाधक जो कड़वा बन गोच।।
●शुभमस्तु !
19.09.2023◆ 4.00प०मा०
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