मंगलवार, 26 सितंबर 2023

हुल्लड़ हूल हैं हम ● [ व्यंग्य ]

 420/2023 


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 ●©शब्दकार 

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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हम शांति प्रिय नहीं हैं।शांति से दूर -दूर तक हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है। 'हमारा' का अर्थ यहाँ 'मेरा' ग्रहण नहीं किया जाए।यह हमारा और कोई नहीं ,हमारा पूरा समाज है,पूरा मोहल्ला है,पूरा गाँव है, पूरा शहर है ,बल्कि यों कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इने -गिने हाथ की अँगुलियों के पोरुओं पर गिने जा सकने वाले कुछ ही लोगों को छोड़कर पूरा देश ही गर्क है इस शौक- मौज की बाढ़ में।अब वह समाज कितना ही प्रबुद्ध हो या अप्रबुद्ध ;इससे कोई लेना - देना नहीं है। इसे आप हो-हल्ला, हुल्लड़बाजी,शोर आदि कुछ भी नाम दे लीजिए। 

 किसी की धार्मिक आस्था अथवा धार्मिक अंध विश्वासों पर डंडा मार करना मेरा कोई उद्देश्य नहीं है।आप खूब अंधे बने रहिए और भेड़चाल में मस्त रहिए ,व्यस्त रहिए।क्योंकि मेरे कुछ भी बताने - समझाने से आप पर कोई फर्क पड़ने वाला भी नहीं है।उलटे मुझे ही गरियाने लगेंगे कि बड़ा उपदेशक बना है , जो हमें सिखाने चला है ! हमें क्या नहीं आता! हमारी धार्मिक या सामाजिक या राजनैतिक या मज़हबी या दलीय या दलदलीय किंवा त्यौहारी विश्वासों को लतियाने ,धकियाने व नकियाने चला है ? 

 बम -पटाखे फोड़ने,आतिशबाजी छोड़ने से लेकर ध्वनि विस्तारक यंत्रों से मंत्र प्रसारण करने तक सरकार के सारे नियमों कानूनों की धज्जियाँ बिखरने का 'बृहत उत्तरदायित्व' का बृहत निर्वाह भी तो आपको ही करना है न ! उसे बखूबी कीजिए ।क्योंकि तभी तो आप सरकार को धर्म या मज़हब विरोधी कह पाएँगे।इसलिए धार्मिक या मजहबी उल्लास के लिए खूब मनमानी करना आपका 'पवित्र कर्तव्य' है।ढोल- नगाड़े, सड़क - गली या चौराहे , मेले , उत्सव, विसर्जन,विवाह-शादी, बारात आदि अनेक अवसरों पर कानफोड़ू धम -धमाधम,ठोक - ठोक खम, करें चमाचम।नाचें छमाछम।

  क्या फर्क पड़ता है आपको इस खयाल से कि किसी बीमार के चैन ,विद्यार्थी की पढ़ाई में गरल,किसी के गम की घड़ी दुखदाई में कोई खलल भी पड़ता होगा ? आप तो आप हैं ! सौ कानूनों के एक आप ही तो बाप हैं, आपके मारे तो पुलिस वाले भी कोने में खड़े -खड़े रहे काँप हैं।कौन कहता है भला कि आप जैसे लोग ही तो प्रदूषण के शाप हैं ,देश के लिए अभिशाप हैं, आप तो अपने ही कद से बड़े बे -नाप हैं ! आप से ही तो धर्म की गूँजती आवाज है। 

  आप न यदि न होते तो ये धर्म ,कर्म ,शर्म सब कुछ रसातल में न जा गिरता ?आप न गिद्ध हैं न बाज हैं, आप ही तो आज के लिए ताज हैं।आप से भला कौन नहीं डरता ? डरता नहीं तो क्या बिना मतों के समर्थन के मरता ? आपको हजार समर्थन और मेरे जैसे विरोधियों को अपने मत भी चिंता ,इसलिए आपके भय वश अपना मत भी आपके बॉक्स में चलता!जमाना बहुमत का।भले ही वह मूर्खों का हो।आपको मूर्ख थोड़े ही कहा है। एक नियम की बात कही है।भेड़ों के झुंड में यदि भेड़िया भी फंस जाए तो वह भी डरपोक श्वान की तरह अपनी पूँछ स्व-टाँगों के भीतर ही दुबकाये! 

  न किसी की सुननी है। बस अपनी मनमानी करनी है।जैसा घरवाला वैसी ही उसकी घरनी है। धर्म - कर्म की नैया इसी तरह तो पार करनी है। इसी को आस्था कहा जाता है। आप जैसे जनाधार के ललाट पर धर्म का सेहरा लपेटा जाता है।अब चाहे मेटाडोर पर साउंड बॉक्सों की बारात निकालिए या मंचों के आँगन में सबको बहरे -बहरी बना डालिए। आप पर आई० पी ०सी ०की सारी की सारी धाराएँ अपनी स्वेच्छाचारिता के गहन गर्त में गारत कर दी जाती हैं। इन्हीं ढोल -धपोलों की धमाधम यदि सुनते हमारे विद्वान वैज्ञानिक तो चन्द्रयान नहीं भेज सके होते।ये वह समाज है जहाँ कर्मठ और स्वेद सिक्त होने वाले को नहीं ,श्रेय केवल ढोल पिटइया को मिलता है।गाल बजईया को मिलता है। यहाँ दिमाग का मूल्य नहीं । मूल्य बाजों का है। शोर का है। वह शोर चाहे मंत्री करे या संतरी।भले ही वह वैज्ञानिक हो , इंजीनियर हो ,डॉक्टर हो , कवि या साहित्यकार हो।उन्हें ये समाज घास भी डालने वाला नहीं है। श्रेय लूटने की सुनामी में कौन आगे है ,मुझे क्या बताना !क्योंकि आप मुझसे ज़्यादा समझदार हैं। अब किसी समझदार को भी क्या समझाना ? 'परेंगित ज्ञान फला हि बुद्धय:।' 

 ● शुभमस्तु ! 

 26.09.2023◆8.00प०मा०

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