रविवार, 24 सितंबर 2023

ग़ज़ल ●

 416/2023

        

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● © शब्दकार 

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

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सच पर   आज टिकी है दुनिया।

छल   से   रोज  छकी है दुनिया।।


रूह  और  दिल  की  टक्कर है,

अपनी  बनी  नकी  है  दुनिया।


पढ़ने  गया    न   कभी मदरसा,

ले    मुबाइल   पकी   है दुनिया।


शौहर     चला    रही   हर बीबी,

जीत न  उसे  सकी   है  दुनिया।


नई     चाल     के   बच्चे   जनमे,

अब  अतफ़ाल     ठगी  है दुनिया।


सभी       चाहते     शहसवार  हों,

जहरी   बड़ी     बकी   है  दुनिया।


'शुभम्'  न   रंग   समझ  में आते,

हमने    खूब     तकी    है दुनिया।


●शुभमस्तु !


*नकी =शत्रु।

*अतफ़ाल =बच्चे।

*शहसवार =घुड़सवार।

*बकी=पूतना।

*तकी =देखी।


24.09.2023◆10.45आ०मा०

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