शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

ज्ञानी ● [ कुंडलिया ]

 425/2023

    

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                        -1-

करते अपने ज्ञान का,सत- उपयोग अनेक।

ज्ञानी  कहलाते वही,जाग्रत रखें  विवेक।।

जाग्रत रखें विवेक,फूँक निज चरण बढ़ाते।

सफल वही नर नेक,जगत में नाम  कमाते।।

'शुभम्'तमस से दूर, उजाला जग में  भरते।

पर उपकारी सूर,समय को उज्ज्वल करते।।


                        -2-

ऐसे  कोरे  ज्ञान का,नहीं मनुज   को लाभ।

काम न आए आपके, ज्यों जंगल का दाभ।।

ज्यों जंगल का दाभ,काम पितरों  के  आए।

तर्पण   होकर  श्राद्ध, पक्ष में शुद्धि   कराए।।

ज्ञानी  है  वह  श्रेष्ठ, 'शुभम्' जो देता  जैसे।

पावन  कुश  है  ज्येष्ठ, ज्ञान को  जानें  ऐसे।।


                        -3-

अपना  ज्ञान बघारिये,जहाँ मिले  सत मोल।

मत  ज्ञानी  बनना वहाँ,शब्द तोलकर  बोल।।

शब्द तोलकर  बोल,श्रेष्ठ गुरु मात-पिता  हों।

विनत   भाव  में  डोल,नहीं कोई  समता  हों।।

'शुभम्' ज्ञान  का मान,बढ़ाने को  है  तपना।

दुनिया  को पहचान,नहीं है हर  जन अपना।।


                        -4-

करते   कब कर्तव्य को,माँग रहे   अधिकार।

ऐसे  ज्ञानी    मूढ़   हैं,  शोषक करें    प्रहार।।

शोषक   करें   प्रहार, बने  हैं पर -  उपदेशी।

परिजीवी    वे   कूर, ढोंग  धारी   नर  वेशी।।

'शुभम्'   हुए  बदनाम,ज्ञान को  हरते - हरते।

आते एक  न काम,फली के खंड   न  करते।।


                        -5-

ज्ञानी ,  दानी , सूरमा , करे  देश   का    काम।

देशभक्ति   होती  वहीं, चमकाए  निज नाम।।

चमकाए   निज  नाम, यथा बल  हो उपयोगी।

करे न घर में  छेद, नहीं तन मन  का   रोगी।।

'शुभम्' वृथा वह ज्ञान,नहीं हो जिसका मानी।

सफल  वही  मनु जात, सूरमा, दानी, ज्ञानी।।


●शुभमस्तु !


29.09.2023◆3.45आ०मा०

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