रविवार, 24 सितंबर 2023

कवि लिख ले नवगीत ● [ नवगीत ]

 414/2023


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●©शब्दकार 

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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टाँगमोड़कर

हाथ छोड़कर

कवि लिख ले नवगीत।


गीत नहीं ये

क्रीत नहीं जी

नई उपज का धान।

मौलिक चिंतन

जुड़ कर अंचल

चढ़ा काव्य की सान।।


लय भी गति भी

जन से रति भी

गरम न इतना शीत।


 समझ न दोहा 

 या चौपाई 

कुंडलिया का छंद।

गहराई में

कहाँ गड़ा  था 

बना शतावर -कंद।।

 

जाना- माना

अलग न तुमको

अद्भुत थी ये रीत।


दुल्हन जैसा

मुखड़ा देखा

छोटे -   छोटे   गाल।

लगे मिलाने 

संग तुम्हारे

'शुभम्'  शैशवी चाल।।


मन में मेरे

भय था छाया

अब भी नहीं अभीत।


● शुभमस्तु !


22.09.2023◆11.00आ०मा०

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