396/2023
[कृष्ण,राधिका,घनश्याम, कान्हा,माखनचोर ]
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● ©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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● सब में एक ●
कृष्ण नहीं जन्मे कभी,ले ब्रज में अवतार।
धन्य हुई ब्रजभूमि ये, बंद न कारागार।।
श्री हरि ने नर रूप में,लिया कृष्ण अवतार।
धन्य देवकी मातु हैं, पहुँचे यशुदा - द्वार।।
आदि शक्ति श्री राधिका,पा कान्हा का नेह।
तन -मन में नित ही रमें,एक प्राण दो देह।।
कृष्ण - राधिका प्रेम की,चर्चा ब्रज के गाँव।
बरसाने में हो रही, नंद-यशोदा ठाँव।।
जो देखे घनश्याम का,मोहन सहज स्वरूप।
संमोहित होकर रहे,कुब्जा हो या भूप।।
राधा गोरी साँवरे , हैं प्यारे घनश्याम।
दीवानी ब्रज-गोपियाँ,ढूँढ़ रहीं ब्रज - ठाम।।
माखनचोरी के लिए, कान्हा हैं बदनाम।
सुन-सुन कर हैरान हैं,मातु यशोदा - धाम।।
कान्हा की वंशी सुनी, गोपी हुई अधीर।
पनघट पर घट छोड़कर,दौड़ चली ज्यों तीर।।
मैया तेरा लाल ये, औघड़ माखनचोर।
मटकी फोड़े राह में,ले सँग ग्वाल किशोर।।
छींके पर छोड़े नहीं, टाँगा जो नवनीत।
तेरे माखनचोर ने,खाया बना अभीत।।
● एक में सब ●
कान्हा माखनचोर ही,
कृष्ण विष्णु घनश्याम।
आदि शक्ति श्री राधिका,
बसता है ब्रजधाम।।
●शुभमस्तु !
06.09.2023◆5.30 आ०मा०
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