413/2023
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● ©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
मानव के उर में सदा,बसते हैं गुण तीन।
सत, रज,तम कहते जिन्हें,रहता उनमें लीन।।
रहता उनमें लीन, कौन कब बाहर आए।
आधारित हालात, कौन-सा रंग दिखाए।।
निर्मल कर उर धीर ,नहीं बनता यदि दानव।
सत का साथ न छोड़,बना रहता नर मानव।।
-2-
मंदिर है मन आपका,रखिए निर्मल मीत।
पास न आए तम कभी,गा सदगुरु के गीत।।
गा सदगुरु के गीत,सभी को मानव जानें।
मन में प्रभु का वास,जीव सब में यह मानें।।
'शुभम्' हीन आचार,न जाएँ नजरों से गिर।
करनी शुद्धाधार, रखें निर्मल मन - मंदिर।।
-3-
धरती पर सब जीव यों,रखते अलग स्वभाव।
कोई प्राणों को हरे,भरता कोई घाव।।
भरता कोई घाव,प्राण निज कोई देता।
परहित में दिन - रात,पूर्ण जीवन कर लेता।।
'शुभम्' बंद कर आँख,मेष निर्मल कब रहती!
ढोर - मनुज के बोझ,दबी रोती ये धरती।।
-4-
भारत माँ के वक्ष पर, अनगिन जीव सवार।
वे सब निर्मल मन नहीं,चूषक और लबार।।
चूषक और लबार, देश को खाते नेता।
बेचें बीमा रेल, नहीं कुछ भू को देता।।
'शुभम्' भरा है खोट,देश को करते गारत।
कैसे बने महान, देश अपना ये भारत।।
-5-
नेता जी का मन नहीं, निर्मल शुद्ध विचार।
छल - बल के हथियार से, करते अपने कार।।
करते अपने कार ,आम जन भोजन तन का।
कंचन कामिनि कार,लक्ष्य है केवल धन का।।
'शुभम्' समझते श्रेष्ठ,स्वयं वोटों को सेता।
ज्यों चिड़िया का अंड,चरित का वैसा नेता।।
●शुभमस्तु !
22.09.2023◆9.15आ०मा०
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