रविवार, 17 सितंबर 2023

मातृभाषा हिंदी ● [ दोहा ]

 401/2023

   

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● ©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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माँ की  घुट्टी में घुले,जिस भाषा  के   बोल।

हिंदी  वह  रस में सनी,भाव भरे  अनमोल।।

अमृत-धारा   से  भरे,माँ के पय   के   बिंदु।

वह   हिंदी  भाषा  अहो,नभ में   जैसे   इंदु।।


माता   को  जिसने नहीं,दी जग में पहचान ।

मौसी-भाषा दे नहीं,  सदा शिखर   सम्मान।।

वैज्ञानिक   भाषा   सदा,हिंदी ही   है   मीत।

चले कंठ से होठ तक, वर्णमाल  बन  गीत।।


हिंदी   की कर साधना,हे मानुष   की  जात।

कवि,लेखक,गायक बना,हो जग में विख्यात।

बोल तोतले मधु भरे,निज माँ की   ही   देन।

शैशव से चल आज तक,बने वाक की सेन।।


जगती  में   विख्यात   हैं,हिंदी माँ  के   गीत।

साधिकार   मुख  से कहें, हिंदी   से  है  प्रीत।।

माँ न कभी  दुतकारती,संतति से   कर    प्रेम।

आँचल  में   लेती  छिपा,  वही बनाती   हेम।।


निज माँ से मिलता तुझे,जगती में सम्मान।

और कहीं मिलना नहीं,माँ -भाषा रस- खान।।

रोटी से  अट्टी  कहे,  पय  पू -पू    नवजात।

अँगुली  गह  सिखला रही,मेरी  प्यारी  मात।।


आओ  हम  सम्मान   दें, माँ- भाषा को आज।

स्वाभाविक बँधना सदा,हिंदी के   सिर  ताज।।


●शुभमस्तु !


13.09.2023◆6.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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