बुधवार, 27 सितंबर 2023

भालचंद्र हे सुमुख प्रभु!● [ दोहा ]

 421/2023

 

[सुमुख,एकदंत,कपिल,गजकर्णक,गणाध्यक्ष,भालचंद्र,विनानायक,धूम्रकेतु]

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

● ©शब्दकार

●  डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

करूँ सुमुख की  वंदना, गौरी - पुत्र   गणेश।

प्रथम पूज्य संकटहरण,पितुवर वरद महेश।।


काव्य   महाभारत लिखा,एकदंत  भगवान।

पंख - लेखनी   भंग थी,लेखन तब   आसान।।


कपिल -उदय के साथ ही,हुआ तमस का नाश

भोर हुआ कलियाँ खिलीं, जागी उर में आश।।


गजकर्णक गजपति सदा,विघ्नविनाशक देव।

भालचंद्र  लंबा उदर,करें सुमुख   नित   सेव।।


गणाध्यक्ष गजमुख हरें,संकट विघ्न  हजार।

विनत रहूँ प्रभुवर सदा,कर दें कृपा   अपार।।


भालचंद्र के शीश पर,शोभित  चंद्र-प्रकाश।

विघ्न-तमस को नष्ट कर,करें पाप  का  नाश।।


खीर   बनाई यत्न से,  बुढ़िया ने   भर  पात्र।

कृपा विनायक देव की,तुष्ट किया जन गात्र।।


मानव के सुविचार को, धूम्रकेतु    का  धूम।

नवाकार   देता सदा,विशद गगन   को  चूम।।


सुमुख,विनायक,कपिल तुम,एकदंत भगवान।

गजकर्णक शुभ ही करें, धूम्रकेतु  सह  मान।।


भालचन्द्र प्रभु आइए, गणाध्यक्ष   तव  नाम।

लंबोदर  पूजित  प्रथम, करें पूर्ण मन - काम।।


दस दिन की ही बात क्या,गजकर्णक विघ्नेश।

आजीवन  वरदान  दें,हरें 'शुभम्'  के  क्लेश।।


●शुभमस्तु !


26.09.2023◆10.30प०मा०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...