391/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
● © शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
-1-
राजा है हालात ही, मानव तो बस दास।
वही बदलता भाल-लिपि,तम या भरे उजास।।
तम या भरे उजास,भरे वह रिक्त तिजोरी।
होता जग - उपहास,स्लेट कोरी की कोरी।।
'शुभम्'कर्म कर मीत,मिले फल ताजा-ताजा।
सत का शुचि परिणाम,बनाता नर को राजा।।
-2-
अपना रखें खयाल तुम,रह निज में तल्लीन।
कैसे भी हालात हों,समय बहुत संगीन।।
समय बहुत संगीन,व्यसन सद ऐसे पालें।
अधरों पर मुस्कान,सदा सुमनों - सी डालें।।
'शुभम्' हृदय में एक, सबलतम देखें सपना।
बीड़ा कर में थाम,लक्ष्य दृढ़ रखना अपना।।
-3-
पानी हो ज्यों झील का,ठहरा रह मत मीत।
सरिता बन बहता रहे,सुने सिंधु - संगीत।।
सुने सिंधु - संगीत,लक्ष्य अपना पा जाए।
बदले निज हालात,सिंधु से सरि मिल पाए।।
'शुभम्'न चलता चाल,चले बिन दही मथानी।
मिलता क्यों नवनीत,रुका सड़ता है पानी।।
-4-
बेटा क्या समझे कभी, बापू के हालात।
कैसे श्रम करना पड़े, तब बनती है बात।।
तब बनती है बात,आप जब बाप बनेगा।
स्वेदज होता अर्थ,नहीं अब और तनेगा।।
'शुभम्' मौज में मस्त,लगाता नित्य लपेटा।
ला-ला ला-ला राग, नहीं गाएगा बेटा।।
-5-
अपने निज हालात का, परिवर्तन आसान।
होता है सबको नहीं, होते धीर महान।।
होते धीर महान, बदलते सरि की धारा।
कर अनुकूल प्रवाह,फिरे क्यों मारा - मारा।।
'शुभम्'न चलता काम,देखने भर से सपने।
रखे हाथ पर हाथ,बैठ मत दृढ़ कर अपने।।
●शुभमस्तु !
01.09.2023◆1.30प०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें