सोमवार, 11 सितंबर 2023

माँ वीणावादिनि - स्तवन ● [ दोहा ]

 397/2023


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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्

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वीणावादिनि   शारदे,  करूँ नमन  सौ बार।

दोहा की नव दीप्ति में,भर दे माँ निज प्यार।।


भव   चेतन   में  गूँजती,माँ की वीणा   नित्य।

'शुभम् ' काव्य में दीप्त है,वाणी का आदित्य।।


प्रथम  तोतले बोल दे, देतीं अक्षर बोध।

शनैः-शनैः माँ की कृपा,करती है नव शोध।।


कभी उऋण होना नहीं,माँ करतीं उपकार।

जीवन में बनता वही, भगवत को उपहार।।


मति  की  जड़ता को हरे,वरद कृपा का हस्त।

अंतर के तम को मिटा,करती माँ अघ ध्वस्त।।


जन्म - जन्म  में भारती, माँ देना   वरदान।

शब्द -शब्द में माँ भरें,दस रस का शुचि मान।।


मन वाणी या कर्म से,अहित न हो हे मात।

किसी मनुज या जीव का,चमके ज्ञान प्रभात।।


अहंकार  आए नहीं, यद्यपि हो बहु मान।

बुद्धि शुद्धि सबकी रहे,ऊँचा रहे   वितान।।


सितवसनी कमलासने,चरणों में  अनुरक्त।

सदा रमे भगवत 'शुभम्',माँ वीणा का भक्त।।


हंसवाहिनी   मातु का,अनुपम ये   वरदान।

रक्षा तन -मन की करे,मिले दिव्य तव ज्ञान।।


कृति में  दोहा-सोरठा,जो हैं मात्र निमित्त।

माँ लिखती गह लेखनी,कवि का हर्षित चित्त।।


●शुभनस्तु !


07.09.2023◆11.15प.मा.

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