428/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कितना गति और लोकप्रिय शब्द है : 'स्वभाव'।लेकिन क्या आपने इस शब्द पर कभी गहनता से विचार किया है? सम्भवतः नहीं किया गया होगा।जन सामान्य में यह बहुत ही हलका - फुलका शब्द माना जाता रहा है। विचार करें तो चार नई बातें निकलती हैं।शोध करें तो बोध होता है। यों बिना विचार किए शब्द - रस ,शब्दानंद अथवा शब्दार्क नहीं मिलता ।आज हम इसी शब्द का आनंद प्रदान करने के लिए उपस्थित हुए हैं।
सामन्यतः 'भाव' शब्द से पूर्व उपसर्ग 'स्व' संयोजित करने से यह शब्द निर्मित हुआ है। सम्पूर्ण सृष्टि में इस 'स्वभाव' का ही तो चमत्कार व्याप्त है। जितने भी प्राणी इस सृष्टि में सृजित हुए हैं ;सबका स्वभाव एक दूसरे से सर्वथा भिन्न है।जिस प्रकार प्रकृति ने समस्त मानव प्राणियों के हाथ की लकीरों को असमान और भिन्न रूप में बनाया है ,वैसे ही उनके स्वभावों में सादृश्य नहीं है।न सभी मनुष्यों के स्वभाव एक समान हैं और नहीं किन्हीं पशु, पक्षियों और मछलियों के स्वभाव में ही कोई समानता है ।स्वभाव की भिन्नता से ही किसी प्राणी के व्यक्तित्व और चरित्र का निर्माण होता है।
'स्व' शब्द का सामान्य अर्थ 'अपना' होता है। अर्थात अपना स्वभाव ।सबका अपना -अपना स्वभाव है। जिसे प्रकृति भी कहा गया है।अब यह 'भाव' 'सु' है या 'कु' है; यह तो बाहर प्रकट होने से ही ज्ञात होता है।
'कोयल कौवा एक सम,ऋतु वसंत के माँहि।
जान परत हैं एक सम,जौ लों बोलत नाँहिं।।'
यही स्थिति सृष्टि के समस्त प्राणियों पर भी प्रभावी होती है। आपने अनुभव किया होगा कि कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं ,जैसे कटखना कुत्ता।भला कटखने कुत्ते से कौन बात करना चाहेगा ? कुछ ऐसे जैसे कि भोला - भाला खरगोश, गिलहरी,गौरैया या कबूतर।कुछ ऐसे भी कि ततैया मिर्च और कुछ गुड़ से भी मधुर।बैल,गधा,ऊँट,शूकर ,सिंह,सियार,हिरन,मूषक, हाथी,भालू,वानर, सबके स्वभाव की भिन्नता मानव व्यक्त्वि में दिखाई देती है।यही स्वभाव की स्वाभाविक विशेषताएँ उसे अन्य प्रजातियों के साथ -साथ उसी की प्रजाति के अन्य जीवों से भिन्न कर देती हैं।सिंह में सियार असम्भव स्वभाव है तो ऊँट में गर्दभ भाव नहीं मिल सकेगा।वानर वानर है तो हाथी हाथी है। सभी अपने - अपने रंग, रूप,आकार,प्रकार के साथ -साथ स्वभाव से सर्वथा भिन्नता धारण किए हुए हैं।
आपने अनुभव किया होगा कि प्रत्येक व्यक्ति का चेहरा जहाँ एक दूसरे से भिन्न होता है ,वहीं वह किसी पशु पक्षी आदि से भी बहुत कुछ समानता लिए हुए होता है।किसी का थोबड़ा भैंसे जैसा तो किसी का गाय जैसा।किसी की नाक की बनावट तोते जैसी घूमी हुई और वक्राकार तो किसी के गाल टमाटर जैसे लाल तो किसी के पिचके हुए पापड़।किसी की चाल में धूल उड़ाती हुई बैलगाड़ी तो किसी की गेंडा सम पिछाड़ी।किसी का सीना उभरी हुई हैड लाइट तो कोई हर समय सींग मारकर तैयार करने को दीवारों से फाइट।किसी की देह पत्थर जैसी कठोर तो किसी की ज्यों जंगल का नाजुक मोर।
यदि मानवों की आँखों पर विचार किया जाए ,तो एक बृहत महाकाव्य ही लिख जाए।आँखों के अनेक रंग ,अनेक तरंग।किसी की आँखें हैं गहरी सुरंग तो किसी की उथली - पुतली वाली दबंग। किसी की आँखों में झूमता हुआ मतंग तो किसी में तरंगायित अनंग।कोई आँख छोटी तो कोई घनी मोटी।किसी - किसी में शतरंज की गोटी। किसी की नज़र बड़ी हेटी तो किसी में ममता भरी लोटी।कहीं कुत्सित क्रूरता का प्रवाह तो उधर विनम्रता का उछाह।कहीं टपकती हुई चालाकी तो कहीं धूर्तताधारी नालायकी।कहीं सरसती हुई सरसता, रसमयता तो कहीं टपकती हुई नीरसता ,उदासीनता।किसी की आँख बिल्ली तो मिचमिची बंद चीनी चिल्ली। कहीं बन्दर जैसी खों - खों कहीं कुत्ते की भों -भों।जितनी आँखें, उतनी कहावतें। किसी-किसी नयन-जोड़ में गहरी झील,किसी का रंग ज्यों समंदर में रंग नील।लाखों - लाख आँखों केअफ़साने। नित-नित नए नयन -तराने। कोई -कोई रेगिस्तान- सी सूखी।कोई भीगी और गीली, कोई बड़ी दुःखी।इनमें भी स्वभाव ही भरा है। कहीं सूखा कहीं हरा-हरा है।
इस प्रकार मनुष्य -मनुष्य की चाल -ढाल ,शरीर के अंग और उपांग ,बाल ,खाल, गाल, रंग ,लंबाई ,चौड़ाई आदि सब स्वभाव के पैमाने हैं।स्वभाव के ही कारण हम उनके दीवाने हैं।वे हमारे परवाने हैं। स्वभाव के ही कारण कोई किसी को फूटी आँखों नहीं सुहाता।स्वभाव के ही कारण मेरा प्रिय दिल से बाहर नहीं जाता।यह भी स्वभाव ही है कि किसी की दुकान पर कोई ग्राहक नहीं जाता ,तो पड़ौस वाली पर लगा रहता सारे दिन ताँता।
स्वभाव सर्वथा प्राकृतिक है।इसलिए इसे चाहकर भी सप्रयास बदला नहीं जा सकता। हाँ ,आंशिक रूप से नियंत्रित ही किया जा सकता है।किंतु भूल जाने पर वह फिर से बाहर आ ही जाता है। नर हो या नारी ,सबको है 'स्वभाव' की लाचारी ।पूर्व जन्म के संस्कार भी हमारे स्वभाव के बड़े कारक हैं।इसीलिए कोई स्वभाव से तारक है ,तो कोई मारक है ,कोई उद्धारक है, कोई प्रताड़क है, कोई घातक है ,क़ोई कोयल, कागा, कोई चातक है।किसी के स्वाभाव में मोर है ;तो कोई- कोई निरा उठाईगीरा और चोर है। सारी दुनिया में मानव के स्वभाव का शोर है।पाकिस्तान ,भारत , अमेरिका,फ्रांस,जर्मनी, ब्रिटेन सबका अलग -अलग स्वाभाव है ,दौर है।साँप- सपोलों का अपना परिचय है,तो नेवला, भेड़िया का अलग ही भय है।
सारी मानव जाति स्वभाव की गुलाम है।यही वह शै है जो आता जीवन में सर्वत्र काम है।किसी का स्वभाव दर्दे - बाम है ,तो किसी का घर के लोगों के लिए भी हराम है,बेकाम है। स्वभाव की बहु आयामी ये सभी बातें ,अपने यथार्थ में सही हैं।यदि आता नहीं हो आपको मेरी बात का विश्वास ,तो घूमकर देख लीजिए दुनिया और शोध कर देखिए कुछ खास। सच ही कहता है 'शुभम्' , नहीं समझिए इसे हास या बकवास। मत यूँ बनाइए अपना चेहरा यों उदास ।अपनी- अपनी समझदानी को टटोलिए और समझ लेने का कीजिए प्रयास।जी हाँ, सतप्रयास।स्व -भाव का स्वाभाव जानिए ,परखिये। इधर से उधर को मत भटकिए।मत अपने किसी की आँख में वृथा मिथ्या खटकिए।
●शुभमस्तु!
30.09.2023◆9.00आ०मा०
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