सोमवार, 4 सितंबर 2023

ईश -वास सचराचर कण में● [ गीतिका ]

 395/2023

 


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● © शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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ईश -वास  सचराचर  कण में।

गिरि,सागर, धरती के तृण में।।


मनुज निहारे  केवल  मुखड़ा,

देखे  नहीं    कर्म -  दर्पण   में।।


प्रभु की भक्ति    नहीं  पाने में,

भक्ति -वास  देने  के प्रण  में।।


शब्दों का है  जाल न कविता,

कविता होती रस-प्रसवण में।।


सदियों   सोता   रहा  आदमी,

प्रकृति करती लघुतम क्षण में।।


स्वेद-सिक्त  परिणाम न खोना,

लगा स्वयं  को नश्वर पण में।।


'शुभम्'  सहज  गिर जाना नीचे,

कठिन उठाना ध्वज को रण में।।


●शुभमस्तु !


04.09.2023◆6.15आ०मा०

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