412/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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इधर गिरगिट
उधर गिरगिट
लगाते दौड़
नित सरपट
फटाफट।
गूँगे नहीं हैं
बोलते भी हैं,
मिटाने
जीभ की खुजली,
मंच सजते
सजतीं पताका
सामने हैं भेड़ -रेवड़।
किसको
सताए देश की चिंता,
लगाना ही धर्म है
तेल से भीगा पलीता,
भेड़ का रेवड़
बनाता वीडियो
पढ़ाता उधर
वह 'गिरगिटी - गीता'।
'रंग बदलो
समय के साथ अपना,
कोई नहीं संगी
नहीं साथी भी तेरा,
सब छूट जाना है
यहीं ये धन बसेरा,
हम देश -उद्धारक,
सुधारक,
इतिहास निर्माता।'
' सर्वश्रेष्ठ हैं हम,
न आया आज तक
ऐसा कभी कोई,
नहीं आने पाएगा,
हमें समझो
अवतार ,
उतारेंगे हमीं
धरती से पाप-
पापियों का भार,
'शुभम्' 'गिरगिटावतार',
लगाएँ पार।'
●शुभमस्तु !
21.09.2023◆5.00आ०मा०
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