बुधवार, 20 सितंबर 2023

पौध धान की सारी ● [ गीत ]

 409/2023

 

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

● ©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

रोप रही हैं

मिलकर नारी

पौध धान की सारी।


खेत लबालब 

है   पानी  से

नीचे  है  घुटनों के।

उड़सी साड़ी

कटि  में अपनी

अंग ढँके बदनों के।।


कमर झुकाए

रोपें       पौधे

काम निजी हितकारी।


हरी -हरी हैं

सुघर कतारें

मन -  आँखों को भातीं।

रहें देखते 

खड़े -खड़े हम

हमको    हैं   ललचातीं।।


सबके सिर है

निजी मुड़ासा

रंग -   बिरंगा  भारी।


एक पंक्ति में

झुकीं एक सँग

व्यस्त हस्त हैं दोनों।

बाएँ कर में

पौधे थामे

हरा   उगाने   सोनों।।


गातीं मिलजुल

गीत    मनोहर

बालाओं की क्यारी।


पुरुष सहायक

संग एक है

पौधघरों   में  जाता।

जब वे माँगें

'पौधे  लाओ'

दौड़ - दौड़ वह लाता।।


यदि हो देरी

ला पाने में

सुनता   मीठी गारी।


आने   वाली

 है   दीवाली

खील धान की लाते।

नए धान्य से

रमा -सुवन शिव

की पूजा कर पाते।।


संस्कृति 'शुभम्'

रम्य   पावन    है

भारत माँ की प्यारी।


●शुभमस्तु !


19.09.2023●10.00आ.मा.


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...