419/2023
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● ©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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बदल रहा है देश, धर्म - अनुकूल नहीं है।
ढोंगी के बहु वेश,महकता फूल नहीं है।।
मन में है कुछ और,दिखावा करता भारी,
चला विषैला दौर,कहीं भी ऊल नहीं है।
देशभक्ति का ढोंग, कर रहे नेता सारे,
उच्चासन पर पोंग,हृदय में हूल नहीं है।
तन को लिया उघार,देह दर्शन रत नारी,
वसन बना है भार,धर्म की धूल नहीं है।
हिंसा की भरमार,नहीं नैतिकता कोई,
पुण्य गया है हार,शील आमूल नहीं है।।
असमय है बरसात,उलटती चाल देख लें,
संतति मारे लात, पाप ये भूल नहीं है।
'शुभम्' न कोई मीत,स्वार्थ की चली सुनामी,
श्लील नहीं संगीत, गुदगुदा शूल नहीं है।
●शुभमस्तु !
25.09.2023◆5.45आ०मा०
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