मंगलवार, 26 सितंबर 2023

बदल रहा है देश ● [ गीतिका ]

 419/2023

    

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

●  ©शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

बदल रहा है देश, धर्म - अनुकूल  नहीं है।

ढोंगी  के बहु  वेश,महकता फूल  नहीं  है।।


मन में है कुछ और,दिखावा करता भारी,

चला विषैला दौर,कहीं भी ऊल नहीं है।


देशभक्ति  का  ढोंग,  कर रहे नेता   सारे,

उच्चासन पर पोंग,हृदय में हूल नहीं है।


तन को लिया उघार,देह दर्शन रत नारी,

वसन बना है भार,धर्म की धूल नहीं है।


हिंसा  की   भरमार,नहीं नैतिकता   कोई,

पुण्य   गया है हार,शील आमूल   नहीं  है।।


असमय है बरसात,उलटती चाल देख लें,

संतति   मारे  लात, पाप  ये भूल  नहीं  है।


'शुभम्' न कोई मीत,स्वार्थ की चली सुनामी,

श्लील  नहीं  संगीत, गुदगुदा शूल  नहीं  है।


●शुभमस्तु !


25.09.2023◆5.45आ०मा०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...