सोमवार, 18 सितंबर 2023

सखा ● [ चौपाई ]

 407/2023

   

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●©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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सखा वही जिसके सँग खा लें।

भेदभाव कण भर क्यों पालें??

जहाँ  भेद की बाड़ लगाई।

मर जाती   है  वहीं सखाई।।


'स' से संगम  और 'खा' खाना।

बनता 'सखा' शब्द जो जाना।।

जाति न ऊँच -नीच का अंतर।

वही सखा मिलता  है दूभर।।


दुख - सुख का  होता नित संगी।

रक्षा   करते   ज्यों बजरंगी।।

अंतरंगता      ऐसी    प्यारी।

दुनिया  बन जाती है न्यारी।।


और न कोई    इतना   भाता।

जितना अपना सखा सुहाता।।

अवसर   आए  मौत   बचाए।

कभी -कभी निज प्राण गँवाए।।


सखा श्याम के ब्रज के ग्वाला।

सँग -सँग रहते संग निवाला।।

गाय   चराते    वन   में   सारे।

नाच  -  कूदते    संगी  प्यारे।।


माखन चोरी के नित साथी।

बनते घोड़े    चढ़ते    हाथी।।

मटकी एक सभी सँग खाते।

छूत न किंचित मन में लाते।।


अब के सखा  न ऐसे   कोई।

साथ न खाते  एक    रसोई।।

संग कृष्ण के सखा सुदामा।

राजा के   सँग फटता जामा।।


सखा-आगमन से सुख माना।

धो -धो चरण अमिय प्रभु जाना।।

मिले न ऐसी   कहीं    मिताई।

एक लवण तो   एक मिठाई।।


'शुभम्' सखा-संसार निराला।

बड़भागी को मिले उजाला।।

हितचिंतक   होते     वे अपने।

आज न ऐसे रिश्ते    टिकने।।


सखा मिलें ज्यों  रँग में  पानी।

है अतीत की अलग कहानी।।

परिवारों को    मिले सघनता।

सखा सखा के उर की सुनता।।


●शुभमस्तु !


उत्तम सृजन आदरणीय श्री 🌹🙏


18.09.2023◆5.15प०मा०

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