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✍️ शब्दकार ©
🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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दिया, तेल ,बाती का नाता।
मेरे मन को अतिशय भाता।।
माटी गूँथ कुम्हार बनाए।
गर्म अवा की आग पकाए।।
दिया लाल रँग का बन जाता।
दिया, तेल, बाती का नाता।।
देता ज्योति दिया कहलाए।
निशि के तम को दूर हटाए।।
प्रतिपल सबक मुझे दे जाता।
दिया, तेल, बाती का नाता।।
हर पल बाती घटती जाती।
जल-जलअपनी देह नसाती।।
बूँद - बूँद कर तेल जलाता।
दिया,तेल, बाती का नाता।।
एक बार बस आग छुआते।
चुकता तेल न दिया बुझाते।।
सुख की नींद सुलाकर जाता।
दिया,तेल,बाती का नाता।।
जब संध्या का तम हो जाता।
तम में कुछ भी दृष्टि न आता।
दिया रात को नित चमकाता।
दिया,तेल, बाती का नाता।।
भोजन कर हम करें पढ़ाई।
होती छत पर नित्य चढ़ाई।।
'शुभम'उजाला सुखद सुहाता
दिया, तेल, बाती का नाता।।
🪴 शुभमस्तु !
२७.१०.२०२१◆४.००
पतनम मार्तण्डस्य।
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