सोमवार, 4 अक्तूबर 2021

सजल 🌴

  

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समांत :आरों ।

पदांत  :    में।

मात्रा भार:22

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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सुना   गया    है     बने  कान दीवारों  में।

सोच-समझ  कर बोल वचन तू  यारों में।।


शंकित - सा रहता  है उर  का हर कोना,

मिलती नहीं  शांति अब कुंज बहारों में।


धरती  पर  तो   खूब  प्रदूषण फैलाया,

दूषित करने  निकला मनुज सितारों में।


भले न हो उद्धार देश का तृण भर भी,

लगा हुआ तन, मन, धन सारा नारों में।


अपनी - अपनी  पीठ थपथपाते  नेता,

मन है   उनका   भरी  तिजोरी हारों में।


वहीं शेष ईमान न अवसर जिसे मिला,

होगा  कोई   मानव   एक हजारों    में।


'शुभम' चीरता धार  नदी  की विरला  ही,

मृतक  देह  तो नित ही बहतीं धारों   में।


🪴 शुभमस्तु !


०४.१९.२०२१◆११.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।

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