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समांत :आरों ।
पदांत : में।
मात्रा भार:22
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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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सुना गया है बने कान दीवारों में।
सोच-समझ कर बोल वचन तू यारों में।।
शंकित - सा रहता है उर का हर कोना,
मिलती नहीं शांति अब कुंज बहारों में।
धरती पर तो खूब प्रदूषण फैलाया,
दूषित करने निकला मनुज सितारों में।
भले न हो उद्धार देश का तृण भर भी,
लगा हुआ तन, मन, धन सारा नारों में।
अपनी - अपनी पीठ थपथपाते नेता,
मन है उनका भरी तिजोरी हारों में।
वहीं शेष ईमान न अवसर जिसे मिला,
होगा कोई मानव एक हजारों में।
'शुभम' चीरता धार नदी की विरला ही,
मृतक देह तो नित ही बहतीं धारों में।
🪴 शुभमस्तु !
०४.१९.२०२१◆११.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।
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