शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021

कलयुग का 'अति रावण' ! 👺 [ अतुकांतिका ]

 

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✍️शब्दकार ©

🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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कैसी - कैसी विडंबना!

खिसियानी बिल्ली का

खंभा नोंचना,

सोचने के समय

कदापि नहीं सोचना!

रावण के पुतले

दहन करने की उदघोषणा।


त्रेता के रावण ने

छुआ भी नहीं 

राम की अर्धांगिनी सीता को,

दुर्भाव से कभी,

और पुतलों के दहनकर्ता

आज के ये  रावण ?

(राम तो हैं ही नहीं अब शेष,

 मंदिर की मूर्तियों में नहीं हैं अवधेश। )

छूने से भी 

सैकड़ों मील आगे,

रे मूढ़!मानव अभागे!

सोचा है कभी 

अपनी वासना के आगे!


आज गली - गली

घर -  घर

नगर - नगर 

रावण ही रावण!

'अतिरावण'!!

रुलाते हुए जनता को,

हेलीकॉप्टरों  में

कारों में दहाड़ रहे हैं!

ऊँचे - ऊँचे मंचों पर चढ़े

चिंघाड़ रहे हैं,

रिश्वत, ब्लात्कार, व्यभिचार,

राहजनी, ग़बन, मिलावट,

भ्रष्टाचार,वर्णवाद, जातिवाद,

पत्थरबाज!


रावणों के मात्र ये दस नहीं,

हजारों शीश और 

लाखों भुजाएँ हैं,

इतने सबके बावजूद,

अभी तक नहीं लजाए हैं,

इन रावणों के लिए

अभी तक बनी नहीं

 कोई भी सजाएँ हैं,

ये सब बड़े ही घुटे -घुटाए 

और मजे - मजाए हैं,

ऊपर से नीचे तक

पूरी दाल ही काली है,

अँधेरे में बाग को उजाड़ता,

वही उजाले में माली है।


 कहाँ हैं शेष अब

 राम और लखन?

चाहते हैं प्रायः 

करना  ये सभी 

देश का भक्षण! 

कौन करेगा मर्यादा

संस्कार औऱ 

संस्कृति का    रक्षण?

तक्षक ही तक्षक!

भक्षक ही भक्षक!!

कोई नहीं शेष

 एक संरक्षक!


रावण ही लगाकर मुखौटे

राम बनकर आ गए हैं,

पूर्व से पश्चिम

उत्तर से दक्षिण तक,

ऊपर से नीचे तक,

इस कोण से 

उस कोण तक

छा गए हैं,

कैसी विडंबना है कि

'अतिरावण' कलयुग के

त्रेता के मर्यादित रावण को।

जला रहे हैं?_

अपनी क़मीज़

 जैकेट के बटन,

कसकर लगा रहे हैं! 

कि कहीं कोई

 उनकी पोल न पा ले!

उनके हिस्से की 

कोई और न खा ले?

'शुभम' यह नहीं कोई रामलीला ,

 अपनी रावणलीला

में राम का उपहास 

दिखा रहे हैं।


🪴 शुभमस्तु !


१५.१०.२०२१◆१.३० पतनम

मार्तण्डस्य।


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