छंद विधान: १.चार चरणों औऱ दो पद का विषम मात्रिक छंद।
२.सम चरणों में 16-16(चौपाई की तरह) और विषम चरणों में
11-11(दोहे के सम चरणों की तरह) कुल 27 मात्राएँ होती हैं।
३.सम चरणों( 2 व 4 ) का अंत गुरु लघु से होना अनिवार्य।
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✍️ शब्दकार ©
🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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दीपावलि का पर्व मनाएँ,
तम का करें विनाश।
रहे न कोई कोना खाली,
फैले नवल प्रकाश।।
कार्तिक की मावस है आई,
घर में नहीं उजास।
बढ़ने लगी शरद शीतलता,
मौसम आया रास।।
पावस विदा शरद का स्वागत,
निर्मल सरिता ताल।
स्वच्छ करें घर -घर का कोना,
जन - जन हो खुशहाल।।
नहीं रहे रोगाणु एक भी,
हों निरोग बीमार।
नाले - नाली हँसें खिलखिला,
पावें हर्ष अपार।।
सभी पटाखे आतिशबाजी,
रहना इनसे दूर।
गैस , धूम से रोग पनपते,
रहें न मद में चूर।।
मदिरा - पान टोटका - टोना,
बरबादी के शूल।
अंधा है विश्वास तुम्हारा,
हिल जाएगी चूल।।
रमा धान्य - धन की हैं देवी,
आएँगी तव द्वार।
शिव सुत श्रीगणेश की पूजा,
कर बाँटें उपहार।।
रावण का संहार कर दिया,
वन से लौटे राम।
रात अमावस की थी काली,
दीप जले हर धाम।।
चौदह वर्ष बिताए वन में,
कठिन समय की बात।
'शुभम'समझकर सीखें यों ही,
लगते हैं आघात।।
🪴 शुभमस्तु !
२४.१०.२०२१◆६.००आरोहणं मार्तण्डस्य।
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