■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ व्यंग्यकार ©
🪶 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
एक दिन विधाता ब्रह्मा जी बहुत चिंतित मुद्रा में बैठे हुए थे।तभी हरिओम !हरिओम!!का श्रीहरि नामोच्चारण करते और अपनी वीणा का गुंजार करते हुए देव ऋषि नारद जी का आगमन हुआ।आते ही पूछ बैठे : 'जगत- पिता विधाता!आज चिंतित मुद्रा में कैसे ? '
बिना किसी भूमिका के ब्रह्मा जी बोले: 'ज्ञात हुआ है कि धर्मराज जी के दूतों में कुछ पवित्र आत्माओं ने प्रवेश प्राप्त कर लिया है। जबकि उनके लिए यह उनकी पात्रता के प्रतिकूल है। यहाँ तो मात्र ऐसे सेवाभावी आत्माओं को स्थान मिलता है जिन्होंने कोई भी पुण्य कर्म नहीं किया हो।
लगता है किसी त्रुटिवश ऐसी उत्तम आत्माओं ने यह कार्य भार प्राप्त कर लिया है ,जो दयालु ,कृपालु और ममता से ओतप्रोत हैं। यमदूतों के लिए यह सर्वथा अपात्रता ही है।उन्हें निकाल कर स्वर्ग में भेजना होगा।'
इस पर नारद जी कहने लगे: 'प्रभुवर ! हो सकता है। किसी स्तर पर त्रुटि हो गई हो। मेरा विनम्र परामर्श यही है कि सभी यमदूतों से उनके अच्छे- बुरे कर्मों का पूर्ण विवरण ले लिया जाए। दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।'
नारद जी का उक्त परामर्श विधाता को सर्वथा उचित लगा औऱ बिना क्षणिक विलम्ब किए नारद जी को धर्मराज जी के लिए यह संदेश भेजा कि अविलम्ब एक सप्ताह के अंतर्गत सभी यमदूत अपने मृत्युलोक में किए हुए पाप- पुण्यों का लेखा- जोखा प्रस्तुत करें, ताकि उनकी छँटनी की जा सके औऱ उनके वर्तमान पदों पर पुनर्विचार किया जा सके।
तदनुसार विधाता के आदेश का अनुपालन हुआ और एक सप्ताह के उपरांत सबकी विवरणिका भी धर्मराज जी को प्राप्त हो गई। परिणाम- आख्या की प्रतीक्षा में सभी यमदूत बड़े चिंतित दिखाई दिए। कुछ के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। 'पता नहीं क्या होगा ? ' की सोच ने सबको उदासीन बना दिया। हो सकता है कि कुछ का पद विस्थापन कर अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया जाए?पद का मोह बड़ा ही आकर्षक औऱ सम्मोहक होता है। भला कौन है जो अपने पद को छोड़ना चाहे। परिणाम की चिंता में सब सूखने लगे।
इधर करवा चौथ के अवसर पर अधिकांश यमदूत अपने - अपने घर अपनी पत्नी के साथ अपने पुजने की तैयारी कर रहे थे। मिठाई फूल माला खरीदने में व्यस्त थे । पर आप जानते हैं कि यमलोक में कभी अवकाश नहीं होता। मृत्युलोक में जिसका भी समय पूर्ण हो जाता है ,उन्हें लाने का गुरुतर दायित्व बोध का भी ध्यान रखना पड़ता है। तभी क्या देखते हैं कि धर्मराज जी का एक व्यक्तिगत सेवक एक संदेश को सूचना पट पर चस्पा कर रहा है। सबकी जिज्ञासा बढ़ी और दौड़ - दौड़ कर उस
सूचना को पढ़ने लगे। सूचना में लिखा हुआ था :"प्रसन्नता का विषय है कि किसी भी यमदूत को अपने पद से विस्थापित नहीं किया जा रहा है। इसका कारण स्पष्ट है कि सभी यमदूत निर्मम, हृदयहीन, विरक्त- भावी, क्रूर , मृत्युलोक में पापरत अधिकारी, नेता,व्यापारी,हत्यारे, डकैत, अपहरण कर्ता, परधनहर्ता ही रहे हैं ।किसी ने मानव शरीर में भी मानवों जैसा कोई कार्य नहीं किया है।वे मानव देह में दानव ,पिशाच और दुष्कर्मा ही रहे हैं। इसलिएधर्मराज संसद की शोभा पहले की तरह उनसे ही बढ़ाई जाएगी।"
धर्मराज ने आदेश दिया:'देव ऋषि नारद जी को अवगत कराया जाए कि वे विधाता को अवगत कराएँ और उन्हें चिंता मुक्त करें।'
देव ऋषि का नाम आते ही वे क्षण भर में उपस्थित हो गए और उन्होंने अविलम्ब विधाता को चिंता मुक्त कर दिया।विधाता मात्र इतना ही बोले :' संतोष है कि हमारे यमलोक का एक भी दूत अपनी पात्रता के विरुद्ध नहीं पाया गया।ये सब वैसे ही हैं, जैसी इनसे अपेक्षा की जाती है।'
बोलो सत्य नारायण भगवान की जय!
🪴 शुभमस्तु !
२३.१०.२०२१◆१०.४५आरोहणं मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें