बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

कामिनी शब्द- शृंगार 💃🏻 [ दोहा ]


(शृंगार, घूँघट, प्रीति, कामिनी ,नयन)

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✍️ शब्दकार ©

💃🏻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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सुंदर  गुण  शृंगार हैं,  सभी   सजाते   देह।

कर्कश  घरनी  यदि रहे,नरक बनाती  गेह।।


गोरे  रँग  के रूप पर,मर मत जाना    मीत।

शुभ गुणधारिणि नारि से,गृह शृंगार सुरीत।।


घूँघट के   पीछे छिपा,कैसा रूप -  कुरूप।

जब तक घूँघट में रहे,समझें अंधा    कूप।।


घूँघट मिथ्या  आवरण,हटा उसे   दे   मीत।

 भेद रूप का जान ले,कर पाए तब   प्रीत।।


आनन देखा नारि  का, कर बैठा नर प्रीति।

भेद चरित का जब खुला,भरी हृदय में भीति


खोलें आँख विवेक की,करनी है  यदि प्रीति।

देख कामिनी - रूप को,भूल न जाना नीति।।


काम भरी है कामिनी,अंधा होता     काम।

मद उतरे जब काम का,दिखने लगते  राम।।


एक कामिनी गर्भिणी,करे दृष्टि   का   पात।

होता अंधा  नाग भी, विष  भी होता   मात।।


नयन-दृष्टि   में प्रेम है,घृणा,क्रोध  या नेह।

क्षण-क्षण बदले रूप को, नयननीर का मेह।


चार नयन जब से जुड़े, हुई प्रेम  की   वृष्टि।

बदल गया संसार ये,अलग सजी  नव सृष्टि।


नयन कामिनी के युगल,

              जगा रहे  उर- प्रीति।

घूँघट से शृंगार की, 

                    नई नहीं है नीति।।


🪴 शुभमस्तु !


२७.१०.२०२१◆११.००आरोहणं मार्तण्डस्य।

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